फरसगांव की मड़ई

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Published on: 12 July 2018

मुश्ताक खान

चित्रकला एवं रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर। भारत भवन, भोपाल तथा शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली में ३० वर्ष का कार्यानुभव।
आदिवासी लोक कला एवं हस्तशिल्प पर शोधकार्य और लेखन।

फरसगांव की मड़ई  में लगने वाला बाजार खरीदारी का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। इस मड़ई में पूजा अनुष्ठान और देवी-देवताओं का मिलन तो नियमित कार्य है पर यहाँ लगने वाली दुकाने आगंतुकों का मोह लेती हैं। क्योंकि यहाँ की मड़ई में अनेक गांवों के देवी देवता आते हैं अतः यहाँ डांग-बैरख, डोली, आंगा एवं छत्र आदि की बहुत भीड़ रहती है। देव चढ़े हुए सिरहा और उन्हें जुहारते स्त्री-पुरुष पग-पग पर दिखाई देते हैं ।

फरसगांव की मड़ई इस मायने में महत्वपूर्ण है कि यहाँ हम पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण एवं आदिवासियों की जीवन शैली में आये परिवर्तन को साफ-साफ देख सकते हैं। स्त्री-पुरुषों के पहनावे, यातायात के साधनों की सुगमता और सुलभता, मोबाइल फोन तथा देशी-विदेशी रेडीमेड सामानों की सहज उपलब्धता आदि हमें जल्द ही ये एहसास करा देते हैं कि अब यह इलाका उतना पिछड़ा नहीं रहा जितना हम बाहरी लोग समझते  हैं। बदलती हुई आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों ने आदिवासियों एवं दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के विश्वदर्शन, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विश्वासों, रीति-रिवाज़ों पर गहरा असर डाला है। यही प्रभाव फारस गांव की मड़ई में परिलक्षित होता है। 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.