कई चीजे ऐसी होती हैं जो अनायास नहीं हो जाती वरन तत्कालीन देशकाल और उस समय घटित हो रही अनेक गतिविधियों और वैचारिक प्रवाह का सम्यक परिणाम होती हैं। इसका एक जीता -जगता उदाहरण ,नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर के महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय के परिसर में सृजित जलपान स्थल गढ़कलेवा है।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_100705.jpg?itok=7Vc2hRoS)
गढ़ कलेवा परिसर में स्थित रसोई
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_100616---Copy.jpg?itok=PQmcGrMb)
गढ़ कलेवा परिसर में अतिथियों के बैठने हेतु बनाये गए कक्ष
सन १९८० के बाद देश भर में और विशेषतौर पर मध्यप्रदेश में देशज ग्रामीण कलाओं के उभार का दौर था। विदेशों में भारत महोत्सव आयोजित हो रहे थे जिनमे सैकड़ों ग्रामीण लोक कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भारत भवन, आदिवासी लोक कला परिषद् और राष्ट्रिय मानव संग्रहालय की स्थापना हो रही थी। जिनमें स्थानीय लोक संस्कृति और आदिवासी कलाओं का बोल-बाला था।दिल्ली स्थित राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय एवं भोपाल स्थित मानव संग्रहालय में तो बड़े पैमाने पर ग्राम परिसरों की रचना की गयी थी जिनमे भारत के विभिन्न प्रांतों में बसने वाले विविध समुदायों के पारम्परिक निवास परिवेश, गृहसज्जा, जीवनशैली से जुड़ी शिल्प कलाएं अदि को दर्शाया गया था। उस समय आयोजित प्रदर्शनियों और संग्रहालय दीर्घाओं में भी आदिवासी-लोक कलाकृतियों के प्रदर्शन में सम्बन्धित ग्रामीण परिवेश की पृष्ठ्भूमि बनाई जा रही थी।देश में जैसे पारम्परिक कलाओं का पुनर्जागरण काल चल रहा था। देशज चित्र एवं शिल्प से सज्जित ग्रामीण परिवेश के प्रति बढ़ती लोकप्रियता को व्यावसायिक स्तर पर भुनाने हेतु गुजरात में विशाला और राजस्थान में चोखी ढाणी जैसे खान-पान परिसर बन गए थे, जहाँ अतिथियों को स्थानीय भोज्य व्यंजन, मिष्ठान और पकवान परोसे जा रहे थे। यहाँ आंतरिक सजावट और बैठक के लिए लालटेन , चारपाई और मूढ़ों का प्रयोग किया गया था। कुल मिलाकर शहर के बीच में सहज-सरल ग्रामीण माहौल में स्थानीय भोजन और कला संगीत का पूरा-पूरा आनंद लेने की व्यवस्थ थी। संभवतः इस सम्पूर्ण विचार पृष्ठभूमि की गढ़कलेवा एक जीती-जागती परिणीति है ।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102453---Copy.jpg?itok=SKNO_awr)
गढ़ कलेवा परिसर में आंतरिक सज्जा हेतु सरगुजा क्षेत्र के रजवार समुदाय के शिल्पियों द्वारा बनायी गयी मिट्टी की जालियां, भित्ति चित्र और अनाज रखने की कोठी।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102603.jpg?itok=F5lEKQ5G)
गढ़ कलेवा परिसर में आंतरिक सज्जा हेतु सरगुजा क्षेत्र के रजवार समुदाय के शिल्पियों द्वारा बनाये गए मिट्टी के उभारदार भित्ति अलंकरण ।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102647.jpg?itok=bKMRmvCe)
गढ़ कलेवा परिसर में आंतरिक सज्जा हेतु सरगुजा क्षेत्र के रजवार समुदाय के शिल्पियों द्वारा बांयी गई जालियां, बस्तर के मुरिया आदिवासियों द्वारा उत्कीर्ण किये गए लकड़ी के खंबे एवं बैठने हेतु चौकियां।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102647---Copy.jpg?itok=C9aKGOzr)
गढ़ कलेवा परिसर में आंतरिक सज्जा हेतु सरगुजा क्षेत्र के रजवार समुदाय के शिल्पियों द्वारा बांयी गई जालियां , बस्तर के मुरिया आदिवासियों द्वारा बनाई गयी लकड़ी की उत्कीर्ण बैंच ।
गढ़कलेवा एक ऐसा सुरम्य और जीवंत वातावरण है जो अपनी सज्जा और बनावट में इतना विनम्र और सर्वग्राही है कि सामान्य से सामान्य और वशिष्टतम व्यक्ति भी यहाँ सहज और शांत चित्त हो जाता है। इसकी वास्तुशिल्पीय विशेषता यह है कि परिसर में लगे वृक्षों को काटे बिना उन्हें लैंडस्केप और बनाई गई संरचनाओं का हिस्सा बना लिया गया है। बैठक व्यवस्था भी अनौपचारिक है तथा इन वृक्षों के आस-पास इस प्रकार जमाई गयी है जैसे आप अपने आँगन में पेड़ के नीचे बैठे हैं। एक बरगद वृक्ष पर मचान भी बनाया गया है जिस पर चढ़ने के लिए लकड़ी की सीढ़ियां हैं।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102532.jpg?itok=XnZjzfVW)
गढ़ कलेवा परिसर में बरगद के वृक्ष पर मचान।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102844.jpg?itok=6FklPat2)
गढ़ कलेवा परिसर में पिछली दीवार पर बनाए गए बस्तर की जनजातीय संस्कृति को दर्शाने वाले भित्ति चित्र ।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171222_153333.jpg?itok=p3AhfP3v)
गढ़ कलेवा परिसर में स्थित , बस्तर के मुरिया आदिवासियों द्वारा उत्कीर्ण किये गए लकड़ी के खंबे ।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171222_153552.jpg?itok=-gaXGIXD)
गढ़ कलेवा परिसर में स्थित मूर्तिशिल्प।
इस स्थान को मुक्तआकाशीय जलपान परिसर कहना अधिक उपुक्त होगा। दीवार के सहारे एक ओर बनाये गए गलियारे को सरगुजा क्षेत्र के रजवार शिल्पियों द्वारा कच्ची मिट्टी से तैयार की गयी जालियों द्वारा सजाया और कक्षों में विभक्त किया गया है। दीवारों पर गोंड जनजातीय भित्तिचित्र संजोये गए हैं। बीच -बीच में दीवारों पर ग्राम जीवन में दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुऐं जैसे लालटेन, बांस की बनी सुपली, टोकरी, मछली पकड़ने की कुमनी अदि लटकायी गयी हैं।फर्नीचर के रूप में बांस के बने मूढ़े और बस्तर के गोंड-मुरिया आदिवासी काष्ठशिल्पियों की बनाई बेंचों का प्रयोग किया गया है। परिसर के पिछले भाग में बस्तर के लौहशिल्पियों द्वारा दो कुटीर बनवाई गयी हैं। पीछे की दीवार पर बस्तर की जनजातीय जीवन शैली को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। कहीं-कहीं लकड़ी पर सुन्दर नक्काशी कर बनाये गए खम्ब स्थापित किये गए हैं। प्रदेश की राजधानी में यह एक ऐसी जगह है जहाँ छत्तीसगढ़ी संस्कृति के दर्शन और खान-पान एक ही स्थान पर उपलब्ध हैं।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_100616---Copy---Copy.jpg?itok=i885GveD)
सरगुजा के कुम्हारों द्वारा बनाए गए अलंकृत कबेलू जिनमे पक्षी आकृतियां बनी हैं।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102519.jpg?itok=tmwIvmVu)
बस्तर के मुरिया आदिवासियों द्वारा बनाए गए लकड़ी के अलंकृत फर्नीचर।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102724.jpg?itok=Y6JV6FLa)
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा बनाए गए भित्ति चित्र एवं बस्तर में मुरिया आदिवासियों द्वारा उत्कीर्ण लकड़ी के खम्बे।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102750.jpg?itok=gndda2vl)
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा बनाए गए भित्ति चित्र।
![](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/users/user3337/20171221_102803---Copy.jpg?itok=yB85Rldg)
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा बनाए गए भित्ति चित्रएवं बस्तर में मुरिया आदिवासियों द्वारा उत्कीर्ण लकड़ी के खम्बे।
यदि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है तो इस कटोरे में धान को यहाँ कितने व्यंजनों के रूप में परोसा जाता है यह अनुभव करने के लिए आपको गढ़कलेवा आना पड़ेगा।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.