मुश्ताक खान जोगा और सुखदेव बंजारा के साथ बातचीत में, 2018
सुकदेवराम नायक : सुकदेवराम नायक।
मुश्ताक खान : हूँ। और वो कौन हैं आपके?
सुकदेवराम नायक : ये मेरा बड़ा पप्पा है।
मुश्ताक खान : अच्छा। बड़ा पापा यानि?
सुकदेवराम नायक : मेरा बाप का बड़ा भाई।
मुश्ताक खान : बड़ा भाई। क्या नाम है?
सुकदेवराम नायक : इसका नाम जुगाराम नायक है।
मुश्ताक खान : तो आप लोग इस गाँव में, कौन गाँव है जहाँ आप लोग रहते हो?
जुगाराम नायक : इरिकपाल।
सुकदेवराम नायक : इरिकपाल। ग्राम इरिकपाल। पटेल पारा।
मुश्ताक खान : इसमें आप लोग रहते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो यहाँ काफी नायक लोग रहते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ। यहाँ पर बारह-तेरह घर हैं।
मुश्ताक खान : नायक लोगों के?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो ये नायक और बंजारा एक ही चीज है?
जुगाराम नायक : एक ही है।
सुकदेवराम नायक : एक ही चीज है।
मुश्ताक खान : तो ये बंजारा को नायक क्यों बोलने लग गये?
जुगाराम नायक : क्यों नहीं बोलेंगे? आदिवासी लोग बंजारा बोलते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा।
जुगाराम नायक : हमारा बोली में बंजारा और आदिवासी लोग नायक बोल देते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : आप लोग जब बोलेंगे अपने-आप को तो बंजारा बोलेंगे।
जुगाराम नायक : बंजारा लोग हैं हम।
मुश्ताक खान : लेकिन यहाँ के जो आदिवासी लोग हैं वो आपको नायक बोलते हैं?
जुगाराम नायक : वो नायक बोलते हैं।
मुश्ताक खान : और ऐसे भी बोलते हैं शायद वो माड़िया लोग कुछ और लवन या लमनी या ऐसा कुछ बोलते हैं?
सुकदेवराम नायक : लमान।
मुश्ताक खान : लमन बोलते हैं।
सुकदेवराम नायक : लमान भी बोलते हैं। हम ही लोगों को लमान बोलते हैं, बंजारे लोग बोलते हैं, नायक लोग बोलते हैं।
मुश्ताक खान : तीन नाम हैं?
सुकदेवराम नायक : तीन नाम हैं।
जुगाराम नायक : तीन नाम चलते हैं हमारे। तीन-चार नाम चलते हैं।
मुश्ताक खान : चार कौन-कौन से?
जुगाराम नायक : हाँ। तो हम हाँ ही कहते हैं।
सुकदेवराम नायक : नहीं। तीन शब्द ही निकलते हैं।
मुश्ताक खान : तो आप लोग क्या बस्तर के रहने वाले हैं या कहीं बाहर से आ कर...?
सुकदेवराम नायक : राजस्थान से हमारे दादी-पीढ़ी आ कर यहाँ बसे हैं।
जुगाराम नायक : पहले से आये हैं बाबा।
मुश्ताक खान : कितने साल हो गये होंगे?
जुगाराम नायक : ओ बाप रे! हमारी तीन-चार पीढ़ियाँ हो गयीं।
मुश्ताक खान : तीन-चार पीढ़ियाँ हो गयीं? तो अभी राजस्थान कभी जाते हैं आप लोग?
जुगाराम नायक : नहीं जाते हम लोग।
सुकदेवराम नायक : हाँ, मेरी माँ जाती है। वो एक बार गयी थी। वो प्रदर्शनी में गयी थी। इधर से, जगदलपुर में चाँदनी चौक में शिल्प सेन्टर है, राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है उनकी पत्नी को। तो पहले हमारे माता-पिता, मैं भी गया बाहर-बाहर। हस्तशिल्प कला की ओर से। अभी हम लोग नहीं जाते। हम लोगों का धन्धा इतना अच्छा नहीं है। बहुत कम चल रहा है। इसी वजह से अब हम लोग नहीं जाते।
मुश्ताक खान : तो मतलब कई पीढ़ियों से आप लोग यहाँ आ कर बस गये?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो ये आन्ध्र प्रदेश में जो आदिवासी हैं, बंजारा..उन लोगों के साथ? आप लोग भी वही हो या...?
जुगाराम नायक : हाँ, वही हैं।
सुकदेवराम नायक : अलग-अलग भाषा में बात करते हैं। लेकिन हमारे इधर के बंजारे एक ही भाषा में बात करते हैं। अभी कहीं-कहीं के बंजारे दूसरी-दूसरी भाषा में बात करते हैं।
जुगाराम नायक : वो आन्ध्रा वालों की बोली दूसरी है।
मुश्ताक खान : लेकिन जाति आपकी एक ही है?
जुगाराम नायक : जाति एक ही है।
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : उधर कोई रिश्तेदारी होती है आप लोगों की?
सुकदेवराम नायक : नहीं।
जुगाराम नायक : नहीं हैं उधर।
मुश्ताक खान : कभी जाना-वाना होता है...?
जुगाराम नायक : नहीं। किस मतलब से जायेंगे? काम पड़े तो जा कर सामान ले कर आते हैं। कोई आएगा तो ले जायेगा नहीं आयेगा तो नहीं जायेंगे।
मुश्ताक खान : तो ये जो कपड़े पर कौड़ी और काँच लगा के काम करते हैं, पहले तो आप लोग इसी तरीके के कपड़े पहनते थे बंजारे लोग?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : ऐसे ही पहनते थे?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : उसको क्या बोलते थे?
जुगाराम नायक : चोली-घागरा आदि बोलते थे। और ये चीजें देवी-देवताओं में चढ़ाने के लिये लेते हैं। या कोई साहेब लोग खरीदते हैं। वो लोग बनाने को कहते हैं तो बना कर देते हैं अन्यथा नहीं।
मुश्ताक खान : लेकिन पहले तो आपके जाति के लोग ही पहनते थे?
जुगाराम नायक : हाँ।
सुकदेवराम नायक : अब बदल गया। अब नहीं पहनते हम लोग।
मुश्ताक खान : अभी नहीं पहनते?
जुगाराम नायक : अभी नहीं पहनते।
सुकदेवराम नायक : कोई पुराने बुजुर्ग हो गये वो लोग अभी भी पहनते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा?
सुकदेवराम नायक : लेडीज लोग।
मुश्ताक खान : हाँ।
सुकदेवराम नायक : वरना अब तो सब देवी-देवताओं को पहनाने-चढ़ाने लगे हैं।
मुश्ताक खान : ये देवी-देवता में कैसे चला गया?
सुकदेवराम नायक : भगवान जाने। ये कौड़ी के कारण हो सकता है। पहले जमाने में कौड़ी कौ पैसा मानते थे।
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ।
सुकदेवराम नायक : तो अभी वही कौड़ी हमारे छत्तीसगढ़ में देवी बन गयी। जब इस ड्रेस को पहनते हैं तो देवी प्रसन्न हो जाती है।
जुगाराम नायक : देवी-देवता वाले कहते हैं तब भी बना कर देते हैं। कोई साहब वगैरह भी कहते हैं तब भी बना कर देते हैं।
मुश्ताक खान : हाँ।
जुगाराम नायक : रखने के लिये।
मुश्ताक खान : हाँ। ये कब से आप देख रहे हो? ये देवी में कब से चल रहा है?
जुगाराम नायक : बहुत साल हो गये। जो जैसा कहता है वैसा हम बना कर देते हैं।
मुश्ताक खान : तो ये कौन आदिवासी लोग ले कर जाते हैं?
जुगाराम नायक : वो माड़िया...।
सुकदेवराम नायक : माड़िया, भतरा, मुरिया सब। वो सब लोग जो देवी-देवताओं को या भगवान को मानते हैं, वो सब ले जाते हैं। अभी धन्धा कम है बरसात में।
मुश्ताक खान : हूँ?
सुकदेवराम नायक : लेकिन दीपावली के बाद हमारा धन्धा होता है।
जुगाराम नायक : धन्धा होता है। बाजार-बाजार में घुमाते हैं।
सुकदेवराम नायक : बाजार-बाजार में घुमाते हैं।
मुश्ताक खान : कोई अगर कहता है तो
जुगाराम नायक : बताएगा तो बनाएँगे वरना नहीं।
मुश्ताक खान : तो दीवाली के बाद क्या देव-धामी शुरू हो जाता है?
जुगाराम नायक : हाँ, शुरू होता है।
मुश्ताक खान : तो उसमें ये ज्यादा चलता है? तो लोग आपके पास आ कर बनवाते हैं या आप बना कर खुद...?
सुकदेवराम नायक : बनाने के लिये आर्डर भी देते हैं। वरना बाजार में जाते हैं हम और बैठे रहते हैं। वहाँ आ कर लेते हैं। पैसे देते हैं और ले जाते हैं।
मुश्ताक खान : तो ये जो माड़िया लोग सिर पर गौर-सींग लगाते हैं, वो पहनते हैं, वो आप ही लोग बनाते हो?
सुकदेवराम नायक : नहीं। सींग हम लोग नहीं बनाते।
मुश्ताक खान : सींग तो वो लोग ले कर आते हैं।
सुकदेवराम नायक : जैसा ये टोकरा है न, वह देखिये। उसके जैसा टोकरा हम लोग बनाते हैं लेकिन उस चीज को हम लोग नहीं छूते। जो गँवर का सींग होता है, उसको यदि हम लोग छूएँगे तो हमारे बंजारा जाति के लोग हम लोगों को जाति से अनजाति कर देंगे।
मुश्ताक खान : अच्छा? तो वो टोकरा जो वो लोग सिर पर लगाते हैं, वो आप लोग नहीं बनाते?
सुकदेवराम नायक : हम लोग बनाते हैं लेकिन सींग को हम लोग उसमें फिट नहीं करते।
मुश्ताक खान : अच्छा, सींग को फिट नहीं करेंगे?
सुकदेवराम नायक : नहीं।
मुश्ताक खान : अगर सींग को हाथ लगा दिया तो वो जाति से निकाल देंगे?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो पूरा आप बना के उनको दे देते हैं?
जुगाराम नायक : हाँ।
सुकदेवराम नायक : नहीं। हम लोग टोकरी बना कर उनको दे देते हैं। बाद में वो लोग उसको फिट कर लेते हैं।
मुश्ताक खान : सींग वो लोग फिट करते हैं। और उसके ऊपर जो चिड़िया का पंख लगा रहता है, सब-कुछ होता है?
सुकदेवराम नायक : सब वही लोग बनाते हैं।
जुगाराम नायक : सब वही लोग लगायेंगे। कौड़ी वगैरह हम लगा देते हैं।
मुश्ताक खान : हाँ।
जुगाराम नायक : वो लोग.............
सुकदेवराम नायक : चिड़िया का पंख आदि सभी वही लोग लगाते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा, मतलब टोकरी आप बनायेंगे और.....
जुगाराम नायक : हाँ, टोकरी हम बना देंगे। पंख वगैरह वो लोग फिट करेंगे। मोर-पंख को भी वे ही लोग लगायेंगे सिर पर।
सुकदेवराम नायक : हम भी लगा सकते हैं पंख लेकिन सिर्फ हम लोग सींग को हाथ नहीं लगाएँगे।
मुश्ताक खान : वो क्या कारण है ऐसा?
सुकदेवराम नायक : नहीं। दूसरे लोग छेड़खानी करते हैं। आप लोग ऐसा धन्धा करते हो, सींग को छूते हो। ये तो दूसरे कास्ट वाले छूते हैं। आप क्यों छूते हैं, ऐसा कह कर हम पर दावा ठोंकते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा, इसीलिये वो सींग आप लोग नहीं लगाते?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : बाकी सब काम आप लोग करते हैं?
जुगाराम नायक : बाकी सब काम हम लोग करते हैं।
मुश्ताक खान : और ये जो माड़िया लोग और जो माड़िन लोग डान्स करते हैं, वो ढोल के ऊपर, वो जो उनका माँदल होता है, उसके ऊपर भी कपड़ा लगाते हैं, वो भी सब आप बनाते हो?
सुकदेवराम नायक : नहीं, नहीं। वो हम नहीं बनाते।
मुश्ताक खान : वो लोग..?
सुकदेवराम नायक : वो मिरगान लोग बनाते हैं।
मुश्ताक खान : मिरगान कोई अलग जाति है?
जुगाराम नायक : अलग जाति है वो।
मुश्ताक खान : तो वो क्या कपड़े के ऊपर कौड़ी आदि लगाते हैं?
सुकदेवराम नायक : नहीं, नहीं।
जुगाराम नायक : नहीं लगाते।
सुकदेवराम नायक : कपड़ा बनाते हैं। ऊपर का जो पट्टा है, वो सब वही लोग बनाते हैं। मार्केट में मिल जाता है।
जुगाराम नायक : कपड़ा में फूल लगा देते हैं वो लोग।
मुश्ताक खान : वो मिरगान लोग?
जुगाराम नायक : बाना लगा देते हैं। ऐसे लगा देते हैं कपड़ा में।
सुकदेवराम नायक : माड़िया लोगों का नाचने, डान्स वाला सब चीज वही मिरगान लोग बना देते हैं।
जुगाराम नायक : ऐसे-ऐसे फूल लगा देते हैं। लाल-काला धागा कपड़ा में वो लोग बनाते हैं।
सुकदेवराम नायक : ...माला जो भी बनता है, वो मार्केट में मिल जाता है।
मुश्ताक खान : अच्छा। तो ये मिरगान लोग कौन हैं?
सुकदेवराम नायक : रहते हैं, बाहर-बाहर।
जुगाराम नायक : कपड़ा बनाने वाले हैं वो लोग।
सुकदेवराम नायक : वो दूर-दूर वाले हैं।
मुश्ताक खान : वो कपड़ा सीते हैं?
सुकदेवराम नायक : हस्तशिल्प कला है वो।
मुश्ताक खान : वो भी हस्तशिल्प कला है?
सुकदेवराम नायक : वो लोग बुनकर हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा, वो बुनकर हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ। हाथ से ही बनाते हैं।
मुश्ताक खान : वो सिलाई कर के उसको नहीं देते?
सुकदेवराम नायक : नहीं, नहीं। वो जहाँ बुनते हैं ना वहीं पर डिजाईन निकाल लेते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा, वहीं पर ही डिजाईन बना लेते हैं?
जुगाराम नायक : चिड़िया, मोर, शेर, कुत्ता, सब चीजें बना देते हैं वो।
मुश्ताक खान : अच्छा?
जुगाराम नायक : आदमी...।
मुश्ताक खान : यहाँ पर कोई मिरगान है आसपास में?
जुगाराम नायक : है ना।
सुकदेवराम नायक : है लेकिन अभी काम बन्द है।
मुश्ताक खान : काम बन्द है?
सुकदेवराम नायक : हाँ, काम बन्द है।
जुगाराम नायक : मगर आदमी है।
सुकदेवराम नायक : आदमी है।
जुगाराम नायक : आदमी है। हाँ।
सुकदेवराम नायक : उसको राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। सिन्धुदास के नाम से।
मुश्ताक खान : वो तो तोकापाल में है?
जुगाराम नायक : हाँ, तोकापाल में है वो।
मुश्ताक खान : वो लोग उसका वो बनाते हैं?
जुगाराम नायक : वो लोग बनाते हैं।
मुश्ताक खान : तो ये जो आप लोग बनाते हो, देवी-देवता के लिये जो लोग देते हैं, क्या-क्या चीज बनाते हो?
सुकदेवराम नायक : हम लोग शो-पीस आईटम बहुत बनाते हैं।
मुश्ताक खान : नहीं। शो-पीस आईटम तो अपन बाद में बात कर लेंगे। लेकिन यहाँ के आदिवासी लोगों की संस्कृति में जो बनाते हैं, वो क्या-क्या बनाते हैं? जैसे वो लहँगा बनाते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : और उसके साथ में?
जुगाराम नायक : चोली।
सुकदेवराम नायक : ऊपर वाला जितना लेडिज लोग पहनते हैं, वो सब बनाते हैं हम लोग। यहाँ से, गर्दन से नीचे क्या बनाते हैं? ब्लाऊज बनाते हैं, चोली बनाते हैं। बस! इतना ही है।
मुश्ताक खान : इतनी ही चीजें आप लोग बनाते हो?
सुकदेवराम नायक : और गोंड बाजा वालों का झालर, पटाड़ कहते हैं उसे, पटाड़ी बोलते हैं उसे। सींग के नीचे ऐसा लगा रहता है।
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ। तो ये पटाड़ी क्या माड़िया लोग पहनते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : जो ढोल बजायेंगे, वो?
जुगाराम नायक : ढोल बजायेंगे, वो लोग।
मुश्ताक खान : जो राऊत लोग होते हैं, वो लोग भी जब नाचा खेलते हैं तो वो भी कौड़ी का कुछ बना हुआ पहनते हैं। वो आप लोग बनाते हो?
सुकदेवराम नायक : बनाते हैं।
मुश्ताक खान : उसको क्या बोलते हो आप लोग?
सुकदेवराम नायक : उसको.....।
जुगाराम नायक : झालर।
सुकदेवराम नायक : नहीं। खाकपयता बोलते हैं उसको।
जुगाराम नायक : खाकपयता।
सुकदेवराम नायक : खाकपयता बोलते हैं।
मुश्ताक खान : खाक....?
सुकदेवराम नायक : ...पयता।
सुकदेवराम नायक : वो इस टाईप का रहता है। ये वाला नहीं रहेगा। ये ऐसा टाईप का रहेगा।
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ। ऐसा टाईप का रहता है।
सुकदेवराम नायक : मैं बना कर दिया हूँ। बहुत बना कर दिया हूँ।
जुगाराम नायक : यहाँ-यहाँ आईना डला होता है।
सुकदेवराम नायक : खाक पयता कहते हैं उसे।
मुश्ताक खान : अच्छा, अच्छा।
जुगाराम नायक : यहाँ तक रहता है।
सुकदेवराम नायक : वो राऊत लोग बहुत पहनते हैं।
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ।
सुकदेवराम नायक : और दीपावली के समय बहुत डान्स करते हैं।
जुगाराम नायक : जब लोग कहेंगे तो हम बनायेंगे वरना हम चुप रहेंगे।
मुश्ताक खान : तो वो जैकेट जैसा भी होता है उसमें?
सुकदेवराम नायक : नहीं। जैकेट नहीं बनाते हैं। सिर्फ हम कौड़ी का ही बना देते हैं।
मुश्ताक खान : कौड़ी का ही बनाते हैं। उसके नीचे कपड़ा लगा देते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ, कपड़ा। जैसा है उसी तरह का।
मुश्ताक खान : तो जैसे जो खाकपयता होता है, वो कितना उसका पैसा-वैसा लेते हैं?
सुकदेवराम नायक : उसका, खाकपयता में कम-से-कम तीन या ढाई किलो कौड़ी लगती है उसमें। तो उसका कम-से-कम ये वाला और ये वाला दोनों मिला कर तीन हजार से कम नहीं होता।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : कौड़ी के ही पैसे लगते हैं उसमें।
मुश्ताक खान : तो आप बता रहे थे, कौड़ी को यहाँ देवी मानते हैं?
सुकदेवराम नायक : हूँ।
मुश्ताक खान : कौन देवी होती है वो?
सुकदेवराम नायक : नहीं। कोई देवी मानता है, कोई नहीं। वरना बाहर देश में तो कोई नहीं मानता।
मुश्ताक खान : लेकिन बस्तर में मानते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ, बस्तर में मानते हैं।
मुश्ताक खान : कोई नाम होता है उस देवी का?
जुगाराम नायक : नहीं। सब देवी दन्तेश्वरी, हिंगलाजिन सब देवी मानते हैं।
मुश्ताक खान : हूँ?
सुकदेवराम नायक : सभी में चलती है कौड़ी।
मुश्ताक खान : तो ये जो कलर, कोई काला है, कोई सफेद है, कोई लाल है? ये क्या अलग-अलग देवी का अलग-अलग रंग है?
सुकदेवराम नायक : अलग-अलग देवी का है।
जुगाराम नायक : अलग-अलग है।
मुश्ताक खान : कौन-कौन देवी का कौन-कौन सा रंग होता है?
सुकदेवराम नायक : वो काला वाला गपागोसिन पेंडरावंडिन का है। वो काला वाला। ये लाल दन्तेश्वरी, परदेसिन माता का होता है।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : और ये पूरा वो खम्भावाला का है। वो देवी पहनता है इसको।
मुश्ताक खान : क्या नाम होता उस देवी का?
सुकदेवराम नायक : फिरन्ता डोकरी बोलते हैं।
मुश्ताक खान : फिरन्ता डोकरी...?
सुकदेवराम नायक : फिरन्ता बोलते हैं।
मुश्ताक खान : तो जो सादा काला है, वो फिरन्ता डोकरी का है और जो काला प्रिन्टेड है, वो किसका है?
सुकदेवराम नायक : डोकरी देव का।
मुश्ताक खान : वो डोकरी देव है?
सुकदेवराम नायक : डोकरी देव।
मुश्ताक खान : डोकरी देव यानि गोंडिन माता?
सुकदेवराम नायक : हाँ, गोंडिन।
मुश्ताक खान : और ये लाल वाला?
सुकदेवराम नायक : ये दन्तेश्वरी, परदेसिन माता का।
मुश्ताक खान : जिस पर लाल के ऊपर छींट होता है?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : और इसके अलावा भी कोई देवी-देवता...?
सुकदेवराम नायक : और भी हैं।
मुश्ताक खान : क्या होता है? कौन किसके लिये क्या बोलते हैं?
सुकदेवराम नायक : सफेद। वो यहाँ पर नहीं है। पूरा ऐसा सफेद रहेगा।
जुगाराम नायक : अपनी मरजी से बनाते हैं, न।
सुकदेवराम नायक : वो होता है बामन देव का।
मुश्ताक खान : बामन देव होता है?
सुकदेवराम नायक : बामन देव होता है।
मुश्ताक खान : वो देवी नहीं है?
सुकदेवराम नायक : है। कोई आर्डर दें तो बना कर देते हैं। वरना नहीं बनाते।
जुगाराम नायक : आप जो बोलेंगे वो यदि हमें आता है तो बना देंगे वरना नहीं। मैं नहीं बना पाऊँगा तो ये बनाएँगे। ये नहीं बना पाएँगे तो कोई और बना देगा, जो जानता हो।
मुश्ताक खान : तो ये आँगा, डोली के लिये भी कपड़ा बनाते हैं आप लोग?
सुकदेवराम नायक : पूरा बनाते हैं।
मुश्ताक खान : उसमें क्या बनाते हैं? अलग-अलग देवी का, डोली का अलग-अलग होता है?
सुकदेवराम नायक : अलग-अलग होता है। कोई दो जन उठाने वाला है, कोई चार जन उठाने वाला आँगा रहता है। कोई दो जन उठाने वाला आँगा होता है। इस टाईप का रहता है। उसमें सजावट भी हम ही लोग बना देते हैं कपड़े का।
मुश्ताक खान : उसको क्या बोलते हो जो आँगा का सजावट बनाते हो?
सुकदेवराम नायक : उसको डोली-कपड़ा बोलते हैं।
मुश्ताक खान : डोली-कपड़ा, आँगा-कपड़ा।
सुकदेवराम नायक : डोली का ड्रेस।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो उसमें भी रंग अलग-अलग देवी का अलग-अलग रहता है?
सुकदेवराम नायक : अलग-अलग रहता है।
जुगाराम नायक : रंग अलग-अलग लगेगा साहेब।
मुश्ताक खान : तो रंग मतलब जो....?
सुकदेवराम नायक : अपना सजाने के ऊपर निर्भर करता है। जो हम बंजारे लोग बनायेंगे न, उस पर देवी खुश रहती है। खुश रहती है और हमारे बनाये हुए को "नहीं" नहीं बोलते। बंजारे के हाथ का बना हम देवियाँ पहनती हैं। हमें बहुत सुन्दर लगता है, कहती हैं।
सुकदेवराम नायक : कोई वापस नहीं करते।
जुगाराम नायक : यदि मशीन का बना कर ले जायेंगे और देवी को पहनायेंगे तो देवी नहीं पहनेगी।
मुश्ताक खान : मतलब मशीन का सिला देवी नहीं पहनेगी?
जुगाराम नायक : नहीं पहनेगी।
जुगाराम नायक : हम लोग...।
सुकदेवराम नायक : पूरा हाथ से ही करते हैं।
जुगाराम नायक : हम लोगों के द्वारा सुई में धागा डाल कर थोड़ा-सा भी सीना पड़ेगा तभी देवी पहनेगी वरना नहीं।
सुकदेवराम नायक : सब हाथ का ही है।
मुश्ताक खान : मतलब, मशीन का धागा लगायेंगे तो उसको नहीं पहनेगी?
जुगाराम नायक : हाँ। नहीं पहनेगी।
मुश्ताक खान : हाथ का धागा बनना चाहिये?
जुगाराम नायक : हाँ। उन्हें बनवाना होगा तो हमारे पास लायेंगे।
मुश्ताक खान : कौन बनाता है ये धागा?
सुकदेवराम नायक : वो दुकान में मिलता है धागा।
मुश्ताक खान : अच्छा। धागा दुकान से लाते हैं।
जुगाराम नायक : सब दुकान से लाते हैं धागा...।
सुकदेवराम नायक : सभी हम लोग सब खरीदते हैं। एक भी हमारे हाथ का नहीं है। ....खरीदते हैं। जितना यहाँ देख रहे हैं, सभी चीजें खरीदनी पड़ती हैं।
मुश्ताक खान : कहाँ से, कौन-सी जगह से?
सुकदेवराम नायक : मार्केट से।
जुगाराम नायक : दुकान से। यहाँ से हम बात करेंगे तो वो हमारे लिये हजार-पाँच हजार का सामान भेज देंगे।
मुश्ताक खान : अच्छा?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : कौन दुकानदार है?
जुगाराम नायक : है।
सुकदेवराम नायक : जगदलपुर में कड़ूलाल दुकान में रहता है। और वहाँ नहीं रहता है तो डायरेक्ट रायपुर से।
मुश्ताक खान : हूँ। कड़ूलाल का कोई दुकान है यहाँ पर?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
जुगाराम नायक : हाँ, है।
मुश्ताक खान : तो वो ये माल बेचता है।
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो शुरू से वो यही माल बेचता है?
सुकदेवराम नायक : हाँ, ऐसे ही। थोड़ा-थोड़ा रखने लगा। तो अभी ज्यादा ही चल रहा है तो अच्छा से लाने-रखने लगा है।
मुश्ताक खान : अभी बंजारा लोगों का ये काम ज्यादा चल रहा है?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : इस काम को आप लोग क्या बोलते हो?
जुगाराम नायक : धंधा-पानी बोलते हैं ना और क्या बोलेंगे?
मुश्ताक खान : नहीं। धन्धा-पानी तो धन्धा है। लेकिन ये कपड़े के ऊपर कौड़ी लगाना, सिलाई करना इसको आपकी भाषा में आप लोग क्या बोलते हो?
जुगाराम नायक : हम लोग कपड़ा लायेंगे और इसको हम लोग फिट करेंगे और बाजार-बाजार घुमाएँगे। और कोई कहेगा तो बना देंगे वरना चुप बैठेंगे।
मुश्ताक खान : सभी बंजारा ये काम करते हैं या कोई खास....?
सुकदेवराम नायक : नहीं, नहीं। सभी बंजारे नहीं करते। सात घर के। इसके पिताजी के परिवार। सात भाई मान कर चलिये। ये सात भाई हैं। ये सातों भाई के परिवार बना रहे हैं।
मुश्ताक खान : और वो सब यहीं रह रहे हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : इरकापाल में?
सुकदेवराम नायक : इरिकपाल में। और बाकी लोग नहीं बनाते।
मुश्ताक खान : और भी बंजारे हैं?
सुकदेवराम नायक : हैं। लेकिन वो लोग ये वाला काम नहीं करते। हमारा खानदानी पेशा यही है।
मुश्ताक खान : तो कुछ बंजारे अलग होते हैं?
जुगाराम नायक : नहीं, नहीं।
मुश्ताक खान : सब एक ही हैं?
सुकदेवराम नायक : एक ही हैं।
मुश्ताक खान : लेकिन कोई-कोई घर के लोग करते हैं, कोई नहीं करते?
सुकदेवराम नायक : कोई नहीं करते। जिसने सीखा है, वे लोग करते हैं। जिसने नहीं सीखा है वे नहीं करते।
मुश्ताक खान : और कोई गाँव में, यहाँ रहते हैं बंजारे?
सुकदेवराम नायक : हाँ, बहुत हैं।
मुश्ताक खान : कहाँ, कहाँ?
जुगाराम नायक : कासोली में हैं, भैरमगढ़ में हैं। लेकिन वो लोग नहीं जानते।
सुकदेवराम नायक : तीन गाँव। बारदा, इरिकपाल।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : दो गाँव के लोग करते हैं, बस। और कहीं के लोग नहीं करते।
जुगाराम नायक : नहीं करने वाले।
मुश्ताक खान : बारदा में तीन घर? तीन या चार घर के लोग करते हैं।
जुगाराम नायक : वही लोग करते हैं और बाकी....।
सुकदेवराम नायक : सबसे ज्यादा हम ही लोग करते हैं।
जुगाराम नायक : अस्सी-नब्बे मकान हैं लेकिन वो लोग मजदूरी करते हैं अभी।
मुश्ताक खान : हूँ।
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : अच्छा, मजदूरी करते हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो बंजारा यहाँ पर खेती का काम भी करते हैं?
जुगाराम नायक : बहुत करते हैं।
जुगाराम नायक : खेती है हमारी। खेती का काम कर रहे हैं हम लोग।
सुकदेवराम नायक : बरसात में थोड़ी देर बैठते हैं। इधर-उधर नहीं जाने होता तो बरसात में थोड़ी देर बैठ कर सी देते हैं ये सामान।
मुश्ताक खान : ये काम कर लेते हैं।
जुगाराम नायक : चार महीने कुछ नहीं बनाएँगे हम, बाजार-मेला।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : अभी बाकी लोग गये हैं बाजार। पाँच-छह सौ खर्चा-पानी निकल जाता है अभी।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : पाँच-छह सौ खर्चा-पानी निकल जाता है अभी बाजार में। ऐसे ही कौड़ी इक्का-दुक्का बिक जाता है।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : लेकिन अभी धन्धा नहीं है। सभी लोग हम लोग जाते हैं। ये भी जाते हैं। मैं भी जाता हूँ। मेरी माँ, मेरे पिताजी सब जाते हैं। लेकिन अभी धन्धा को हम लोगों ने बन्द कर रखा है। खेती-बाड़ी करेंगे उसके बाद दीपावली के बाद हम लोग चालू करेंगे।
मुश्ताक खान : अच्छा?
जुगाराम नायक : वो सब नारायणपुर, मर्दापाल, डोंगर वो सब तरफ घूमते हैं हम तो।
मुश्ताक खान : वहाँ तक जाते हो?
जुगाराम नायक : हाँ, जाते हैं हम लोग।
मुश्ताक खान : पूरे बस्तर में जाते हो?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : कहीं भी हाट-बाजार में...?
सुकदेवराम नायक : साल में एक बार....
जुगाराम नायक : मेला में जाते हैं हम लोग।
मुश्ताक खान : कब?
सुकदेवराम नायक : वो जगार मेला कहते हैं, उसमें।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : नारायणपुर में।
मुश्ताक खान : हूँ।
जुगाराम नायक : उसी समय जाते हैं और एक बार पन्द्रह दिनों के लिये लगता है, उसमें जाते हैं।
मुश्ताक खान : और सरकार की एम्पोरियम हैं, वो भी खरीदने लगे हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ। हम ही लोग ले जाकर देते हैं।
मुश्ताक खान : कब से आप लोगों का काम है वहाँ पर?
सुकदेवराम नायक : बहुत सालों से।
मुश्ताक खान : कितना फिर भी कौन से सन् से...?
सुकदेवराम नायक : उतना मालूम नहीं। हम लोग....पन्द्रह-सोलह साल से ऊपर ही हो गये होंगे।
मुश्ताक खान : उधर भी देते हो आप लोग?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो वो लोग किस हिसाब से लेते हैं आप लोगों से?
सुकदेवराम नायक : वही। इस तरह की एक टोकरी को साढ़े चार सौ.....
जुगाराम नायक : ....पाँच सौ, छह सौ.....।
सुकदेवराम नायक : इससे थोड़ा अधिक कौड़ी आदि डालेंगे तो पाँच सौ तक पहुँच जाती है कीमत।
मुश्ताक खान : पहुँच जाती है।
जुगाराम नायक : इस तरह के माल नहीं बनाते।
सुकदेवराम नायक : और यदि ऐसा बनायेंगे, इतना ही बनायेंगे तो....इतना ही सामान डालेंगे तो हम लोग तीन सौ पचास तक हम लोग दे देते हैं।
मुश्ताक खान : तो इनमें जो सरकारी एम्पोरियम आपसे जो सामान खरीदता है, उसमें आप लोगों को कुछ सहायता मिली है? उससे कुछ फायदा होता है?
सुकदेवराम नायक : हाँ, होता है।
मुश्ताक खान : कितना होता है?
सुकदेवराम नायक : लेकिन अभी बहुत रेट हो गया है। अभी फायदा नहीं होता।
मुश्ताक खान : अभी फायदा नहीं होता?
सुकदेवराम नायक : नहीं होता। बहुत ज्यादा रेट हो गया न!
मुश्ताक खान : कौड़ी किस भाव मिल रहा है?
सुकदेवराम नायक : अभी तीन सौ पचास चल रहा था लेकिन महीने-दो महीने से हम लोग नहीं जा रहे हैं। खरीद कर नहीं ला रहे हैं। अभी हमारा धन्धा नहीं है तो क्या लायेंगे?
मुश्ताक खान : तीन सौ पचास रुपये का एक किलो?
सुकदेवराम नायक : हाँ। एक पाव रहता है।
मुश्ताक खान : एक पाव रहता है?
सुकदेवराम नायक : बहुत मेहनत है उसमें। उसको भी तोड़ना पड़ता है। तोड़ना पड़ता है उसके बाद गरम पानी में उबालना पड़ता है तभी तो साफ-सफाई दिखेगा।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : उसमें कीचड़ रहता है। गन्दगी रहता है। वो हटेगा तो अच्छा दिखेगा।
मुश्ताक खान : हूँ। तो कौड़ी को पहले काटते हो?
सुकदेवराम नायक : काटते हैं।
मुश्ताक खान : किस चीज से काटते हैं आप?
जुगाराम नायक : छुरी से काटते हैं।
सुकदेवराम नायक : वो चाकू रहता है और लकड़ी का एक ढाँचा रहता है। उस ढाँचे में कौड़ी के रख कर ऊपर चाकू को रख कर ऊपर से रॉड से मारते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा?
सुकदेवराम नायक : तो जो अच्छा फूटेगा तो अच्छा और गलत फूट गया तो गया। कुछ काम का नहीं।
मुश्ताक खान : वो बेकार चला गया।
सुकदेवराम नायक : बेकार। वो किसी काम का ही नहीं है।
मुश्ताक खान : हूँ?
सुकदेवराम नायक : छिलका भी कुछ काम का नहीं। कुछ नहीं।
मुश्ताक खान : अच्छा। तो फिर उसके बाद उबालते हो पानी में, उसको साफ करते हो?
सुकदेवराम नायक : हाँ। उसके बाद एक-दो दिन धूप में सूखेगा तो सूखेगा, नहीं सूखा तो पड़ा रहेगा। सूखने पर ही काम करेंगे वरना भीगा रहेगा तो हम कहाँ से काम कर पायेंगे?
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ।
सुकदेवराम नायक : हाथ में पानी रहेगा तो सूई कहाँ से निकलेगी?
मुश्ताक खान : तो इसीलिये उसको सुखाना पड़ता है पहले?
सुकदेवराम नायक : सुखाना पड़ता है।
मुश्ताक खान : और इसका कुछ नाप भी रहता है? कैसे नापते हो आप लोग? कैसे काटते हो कपड़े को?
सुकदेवराम नायक : नहीं। हम हाथ से ही फाड़ देते हैं। कैंची से या फिर मुँह में डाल कर हाथ से। कैंची पकड़ने का टाईम नहीं रहता। टेलर लोग नापते हैं, वैसा नहीं है। हमारा मन, जैसा हम चाहें।
मुश्ताक खान : तो औरत-आदमी दोनों करते हैं ये काम?
सुकदेवराम नायक : सब करते हैं। परिवार में जितना औरत हैं मर्द हैं, सब करते हैं। बाल-बच्चों को भी सिखाते हैं आगे के लिये। वो भी करते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा, इसमें आदमी-औरत का फर्क नहीं है इस काम में? ऐसा नहीं है कि ये काम औरतें ही करेंगी...?
सुकदेवराम नायक : नहीं, नहीं। सभी लोग करते हैं।
मुश्ताक खान : कोई भी करेगा?
जुगाराम नायक : हूँ। बच्चे लोग करते हैं। बाई लोग करती हैं।
मुश्ताक खान : हाँ?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो ये जैसे देव-धामी का जो काम करते हो आप लोग, उसका कपड़ा बनाते हो तो वो देवता लोग आपको कुछ कहते हैं सपने-वपने में?
सुकदेवराम नायक : हाँ, कहते हैं।
मुश्ताक खान : क्या बोलते हैं?
सुकदेवराम नायक : बहुत अच्छा बना दिया। आपका अच्छा बनेगा।
जुगाराम नायक : सुखी रहो। बने-बने खाओ, बने-बने रहो। धन्धा-पानी बढ़िया चले। ऐसा बोलते हैं आ कर।
मुश्ताक खान : नहीं। वो तो सिरहा बोलता है आपको।
सुकदेवराम नायक : देवी बोलती है सिरहा के ऊपर आ कर।
मुश्ताक खान : सिरहा पर जो देवी होती है, वो।
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : लेकिन ऐसे सपने में दिखा देवी कोई कि हमको अच्छा कपड़ा.....?
जुगाराम नायक : जो भला आदमी होगा उसी को देवी दर्शन देगी। मुझ जैसों को नहीं।
सुकदेवराम नायक : जिसका शरीर अच्छा है उसी को दिखाई देगी वरना नहीं।
मुश्ताक खान : अच्छा। अच्छा शरीर से मतलब?
सुकदेवराम नायक : पीने-खाने वाले आदमी को दिखाई नहीं देगी।
मुश्ताक खान : नहीं दिखाई देगी? वैसे भला व्यक्ति होगा तो दिखाई देगी? अच्छा, जब जैसे औरतें जब उनको माहवारी होती है, उस समय वे यह काम करती हैं?
सुकदेवराम नायक : नहीं। हाँ, कर देती हैं लेकिन हमारे यहाँ से वो महीनावारी भी हुई होगी तो भी वह काम कर देती है किन्तु जब उस वस्तु को ग्राहक खरीद कर ले जायेगा तो वह उस पर पानी छिड़क कर उसका उपयोग करेगा। उसे थोड़े से पानी में भिगा दिया तो हो गया। छूत नहीं रह जाती।
मुश्ताक खान : अच्छा?
सुकदेवराम नायक : इतने में कोई छुआछूत की बात नहीं होती।
मुश्ताक खान : अच्छा, तो जब तैयार हो जाती है वस्तु तो उस पर पानी छिड़क देने पर छूत नहीं रह जाती?
सुकदेवराम नायक : हाँ। जो व्यक्ति खरीद कर ले जायेगा वह अपने घर में यह प्रक्रिया करेगा।
मुश्ताक खान : अच्छा?
सुकदेवराम नायक : हमारे घर में नहीं बनायेगा।
मुश्ताक खान : अपने घर में जा कर करेगा?
सुकदेवराम नायक : अपने घर में जा कर बनायेगा।
मुश्ताक खान : तो जैसे सिरहा लोग ले गये इसको, तो वो क्या करता है इसका? क्या उसकी पहले कोई पूजा-पाठ करेगा तब पहनेगा या क्या करेगा?
सुकदेवराम नायक : नहीं, नहीं। जिस दिन वो बकरा-वकरा काटेगा.....।
जुगाराम नायक : मेला में....।
सुकदेवराम नायक : बकरा-वकरा काटेगा। कोई बकरा ला कर देगा, कोई पैसे ला कर देगा, कोई फूल ला कर देगा या कोई नारियल ला कर देगा उस समय वो पहनेगा। उसके बाद वो खून भी पीयेगा। खून भी पीता है।
जुगाराम नायक : देवी बकरा का...।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : बलि चढ़ाते हैं।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : उस समय वह पूरी तरह से सज-धज कर निकलता है सिरहा....।
जुगाराम नायक : चोली, लहँगा, टोपी सब पहनते हैं। और वो लोग खून देंगे थाली में तो उसे वह पीयेगा।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : कोई बकरा का भी खून पीता है, कोई कबूतर का भी, कोई मुर्गा का भी खून पीता है।
मुश्ताक खान : अलग-अलग देवी का अलग-अलग होता है?
सुकदेवराम नायक : अलग-अलग।
जुगाराम नायक : अलग-अलग।
मुश्ताक खान : जैसे कौन-कौन सा देवी किसका होता है?
सुकदेवराम नायक : जो मैंने वो वाला कहा ना, वो काला कबूतर का खून पीती है।
मुश्ताक खान : कौन देवी?
सुकदेवराम नायक : उसे गोंडिन देवी बोलते हैं।
जुगाराम नायक : डोकरी देव, गोंडिन देवी।
मुश्ताक खान : काला कबूतर की बलि लेती हैं?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : वो उसका खून पीयेगी?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : अच्छा?
सुकदेवराम नायक : और ये वाला का सफेद बकरा।
मुश्ताक खान : ये कौन?
सुकदेवराम नायक : ये माता। परदेसिन माता, दन्तेश्वरी माता।
मुश्ताक खान : परदेसिन, दन्तेश्वरी। इनको बकरे की बलि, सफेद बकरा चाहिये?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
जुगाराम नायक : सफेद हो, लाल हो। बकरे से मतलब है।
मुश्ताक खान : हूँ। वो उसका खून पीयेगी?
सुकदेवराम नायक : और...ये पूरा ऐसा काले वाले का। वो काला बकरा का ही खून पीयेगी।
मुश्ताक खान : ये काला वाला किसको चाहिये, फिरन्ता?
सुकदेवराम नायक : फिरन्ता। उसके लिये भेड़ चाहिये, भेड़।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : वह बकरे से अलग होता है।
मुश्ताक खान : हूँ।
मुश्ताक खान : उसको भेड़ की बलि देते हैं?
सुकदेवराम नायक : भेड़ की बलि।
मुश्ताक खान : उसका खून पीती है। ऐसा कहते हैं कि पहले तो भैंसा की भी बलि देते थे?
सुकदेवराम नायक : नहीं, वो भैंसा वाला अलग है। वो अलग है।
जुगाराम नायक : वो अलग है। ऐसा नली से काट कर छोड़े देंगे। नहीं खायेंगे। केवल माड़िया-मुरिया गाँव वाले ले जा कर खायेंगे।
मुश्ताक खान : अच्छा?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : वो कौन देव है?
सुकदेवराम नायक : वो.... क्या कहते हैं उसे?
जुगाराम नायक : फिरन्ता.....?
सुकदेवराम नायक : फिरन्ता है लेकिन वो कुछ अलग होता है।
जुगाराम नायक : हूँ।
सुकदेवराम नायक : वो पहले जमाने में जैसा बकरे की बलि देते आये हैं वैसे ही अभी के लोग नहीं जानते हैं तो भैंस को काट देते हैं। ये सब हम ही लोगों ने बदल दिया है।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : पहले जमाने में ठीक-ठाक था। अभी के जमाने में काफी लफड़े होने लगे हैं तो क्या करें अभी? इसको भी दें, चलेगा बोलते हैं। इसी टाईप का हो गया है।
मुश्ताक खान : तो मतलब बंजारा लोगों को....पहले...बहुत पहले से बस्तर में रह रहे हैं। तो पहले किस चीज का व्यापार किया करते थे?
जुगाराम नायक : हम लोग? नमक लाते थे।
मुश्ताक खान : नमक लाते थे?
जुगाराम नायक : नमक लाते थे।
मुश्ताक खान : कहाँ से?
जुगाराम नायक : सालूर से।
मुश्ताक खान : सालूर...? कहाँ पर है ये?
जुगाराम नायक : ओड़िसा में।
मुश्ताक खान : ओड़िसा में है सालूर?
सुकदेवराम नायक : नमक भी बेचते थे और गाय-भैंस का धन्धा भी करते थे।
मुश्ताक खान : अच्छा?
जुगाराम नायक : पहली बार।
सुकदेवराम नायक : पहले। आगे जमाने में गाय-बैल-भैंसा धन्धा करते-करते यहाँ बसते, वहाँ बसते, यहाँ बाँधते वहाँ बाँधते-बाँधते छोटी-सी झोपड़ी बनाते-बनाते गाँव बस गये।
मुश्ताक खान : लेकिन आप लोग तो कहते हो कि आप राजस्थान से आये हैं? तो फिर नमक सालूर से कैसे लाये?
जुगाराम नायक : भाई उधर हमारी जिंदगी नहीं चली तो इधर चले आये बस्तर में। इधर से धन्धा करेंगे तब तो खायेंगे वरना क्या खायेंगे?
मुश्ताक खान : अच्छा तो पहले जो आप लोगों के बाप-दादी थे वो राजस्थान से उड़िसा गये थे?
सुकदेवराम नायक : नमक लेने जाते थे।
जुगाराम नायक : नमक हम लोग भी बेचते थे।
मुश्ताक खान : पहले नमक आप लोग भी बेचते थे? तो नमक लेने के लिये उड़िसा गये थे?
जुगाराम नायक : हाँ, वहाँ से लाते हैं।
मुश्ताक खान : मतलब, राजस्थान से उड़िसा जाते थे?
जुगाराम नायक : नहीं। यहाँ से।
मुश्ताक खान : अच्छा, यहाँ से?
जुगाराम नायक : उधर से आकर यहाँ बस गये।
सुकदेवराम नायक : ऐसा धन्धा करना है। नमक धन्धा कर के खाना है, कह कर फिर यहीं पर झोपड़ी बना कर फिर गये नमक ले के आये और बेचने लगे।
सुकदेवराम नायक : फिर बाद में हमारे बंजारे लोग हैं, यह समझ कर थोड़ा-थोड़ा ये धन्धा चालू करने लगे सिलाई का।
मुश्ताक खान : हूँ।
सुकदेवराम नायक : ये चोली-घाघरा में।
जुगाराम नायक : बाकी लोग खेती कर रहे हैं। जो जानते हैं, वे ही ये सब बना रहे हैं। जो नहीं जानता वह क्या करेगा?
मुश्ताक खान : पहले तो ऐसे कपड़े बंजारे लोग पहना करते थे?
जुगाराम नायक : हाँ, पहनते थे।
मुश्ताक खान : तो पहले लोग अपने लिये बनाते थे? मतलब खुद पहनने के लिये?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : बाद में ये देव-धामी के लिये इन लोगों ने भी लेना शुरू कर दिया?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : तो अभी तो नहीं पहनते?
जुगाराम नायक : अभी नहीं पहनते। अब दुकान से ला कर पहनते हैं।
सुकदेवराम नायक : अभी तो देवी-देवता पहनते हैं। लोग कहते हैं कि अब हम नहीं पहनेंगे। शर्मा जाते हैं। कोई-कोई बुजुर्ग लोग पहनते हैं। बड़ी-बूढ़ियाँ पहनती हैं। पहले जमाने के लोग जो हैं वो जो सौ से भी अधिक उम्र के हैं, वो लोग पहनते हैं। ऐसे कुछ लोग हैं।
मुश्ताक खान : पहले तो चाँदी का......?
जुगाराम नायक : पहले तो साहेब चाँदी का पैसा था। उस समय से सब राज्य बदल गया।
सुकदेवराम नायक : हमारे लोग पहले धोती पहनते थे।
जुगाराम नायक : हम धोती पहनने वाले हैं।
मुश्ताक खान : आप धोती पहनते थे?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : और पगड़ी बाँधते हैं?
जुगाराम नायक : हाँ, पगड़ी बाँधते हैं हम लोग।
सुकदेवराम नायक : अभी राजस्थान की ओर से बंजारे आयेंगे तो हम उन्हें नहीं पहचान पाते। वे हमारे गाँव से हो कर जायेंगे किन्तु हम नहीं पहचान पायेंगे। उधर की भाषा अलग हमारी भाषा अलग।
मुश्ताक खान : मतलब पहले जो बंजारा लोग पगड़ी बाँधते थे और धोती पहनते थे, उससे आदिवासी पहचान लेते थे कि ये बंजारे हैं?
सुकदेवराम नायक : लेडिज को भी अच्छे से पहचान लेते थे कि ये बंजारे लोग हैं।
मुश्ताक खान : हाँ।
जुगाराम नायक : पहले पहनते थे। हाथीदाँत के गहने पहनते थे।
मुश्ताक खान : हाँ।
जुगाराम नायक : पहले की बातें छोड़ दें साहेब। अब क्या बताएँगे आपको?
मुश्ताक खान : तो आपके जमाने में राजा था यहाँ पर, बस्तर में? जब आप बच्चे थे तब राजा था यहाँ पर?
जुगाराम नायक : हाँ, मैंने देखा था।
मुश्ताक खान : कौन राजा था उस वक्त?
जुगाराम नायक : वो अभी खतम हो गया। दो साल तक वह रथ पर भी बैठा था।
मुश्ताक खान : भरतचन्द्र भंजदेव?
जुगाराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : वो जो प्रवीरचन्द्र भंजदेव थे, उनको?
जुगाराम नायक : उनको नहीं जानता था।
मुश्ताक खान : उसका टाईम नहीं देखा?
सुकदेवराम नायक : हाँ, नहीं देखा मैंने।
मुश्ताक खान : भरतचन्द्र भंजदेव को आप कैसे जान रहे थे?
जुगाराम नायक : मैं जाता था मेला (दशहरा)। वो दो साल तक रथ पर बैठे थे।
मुश्ताक खान : हूँ।
जुगाराम नायक : बाद में खतम हो गये।
मुश्ताक खान : अच्छा, आप दशहरे में गये थे। तो रथ में उसको देखा था?
जुगाराम नायक : हाँ। वह बैठा था ऊपर में। बड़ी भीड़ थी वहाँ लोगों की देखने के लिये उसे।
मुश्ताक खान : तो दशहरे के रथ के लिये भी कोई कपड़े आपसे बनवाते थे क्या?
जुगाराम नायक : नहीं, नहीं।
मुश्ताक खान : पहले कौड़ी-वौड़ी का कुछ...?
जुगाराम नायक : नहीं।
मुश्ताक खान : दशहरे में कुछ नहीं होता था?
जुगाराम नायक : नहीं।
जुगाराम नायक : हम खंडा वाला ले कर जाते हैं। लेने वाले कोई आये तो वो टोकरा, टोपी आदि खरीदते हैं। है तो देंगे, नहीं है तो नहीं देंगे।
मुश्ताक खान : आप भी पहले नमक बेचते थे?
जुगाराम नायक : नहीं, नहीं।
मुश्ताक खान : नहीं। पहले आपने कभी बेचा था?
सुकदेवराम नायक : हाँ, बेचा है।
जुगाराम नायक : हाँ, पिताजी ने भी बेचा है। मैंने नहीं बेचा है।
मुश्ताक खान : आपने नहीं बेचा? आपके पिताजी को नमक बेचते देखा है, आपने?
जुगाराम नायक : हाँ। पिताजी बेचा करते थे।
मुश्ताक खान : हाँ।
सुकदेवराम नायक : आठ-नौ साल हो गये हमारे दादी को गुजरे।
जुगाराम नायक : एक साल का एक रुपया उसका.....। मेरे पिता के पिता थे।
मुश्ताक खान : एक साल में एक रुपया?
जुगाराम नायक : एक रुपया। वो कौन-सा रुपया? वो रुपया
मुश्ताक खान : चाँदी वाला?
जुगाराम नायक : चाँदी वाला।
मुश्ताक खान : तो एक साल में एक रुपया कमाते थे?
जुगाराम नायक : एक रुपया।
मुश्ताक खान : पूरे साल का?
जुगाराम नायक : साल का।
मुश्ताक खान : नमक ला कर दो?
जुगाराम नायक : तो आप तो साहब लोग हो। गाड़ी दोगे, मोटर दोगे तो हम जा कर लायेंगे। बड़ा आदमी कहाँ जायेंगे? घर में रहेंगे। ला कर हम दिखाएँगे, साएब, हम इतना लाये।
सुकदेवराम नायक : हमारी मजदूरी एक रुपये। दिन भर मजदूरी करो, कुछ भी करो उसे एक रुपया देना जरूरी है।
मुश्ताक खान : अच्छा? मगर अब ये सब काम खतम हो गया।
जुगाराम नायक : अब तो लोग गाड़ी-मोटर से जाने लगे हैं। रात को बैठते हैं गाड़ी में और सबेरे पहुँच जाते हैं जगदलपुर।
मुश्ताक खान : तो पहले क्या बैलगाड़ी से जाते थे?
सुकदेवराम नायक : हाँ, बैलगाड़ी से।
जुगाराम नायक : बैलगाड़ी से। बीस पायली, पन्द्रह पायली लाते थे। बच्चे लोगों को थोड़ा-थोड़ा लादने को कहते थे। मोहल्ले-मोहल्ले में घूम-घूम कर बेचते थे।
सुकदेवराम नायक गाँव-गाँव में।
जुगाराम नायक : गाँव-गाँव में। लोग नमक लेते थे। अपना गुजारा करते थे। अभी तो बाजार में बोरों में भर नमक आता है।
मुश्ताक खान : मतलब पहले वहाँ से ले आते थे खरीद कर और छोटी-छोटी पायली में भर कर गाँव-गाँव घूम कर बेचते थे?
जुगाराम नायक : चार आने, एक पैसे, दो पैसे में बेचते थे और जीवन चलाते थे।
मुश्ताक खान : कब खतम हो गया ये? कितने साल हो गये?
जुगाराम नायक : बहुत साल हो गये।
सुकदेवराम नायक : हम लोग नहीं जानते। ये भी नहीं जानते। जानते भी होंगे तो छोटे रहे होंगे।
जुगाराम नायक : हाँ, छोटा था। इतना बड़ा था मैं।
तो आप लोगों का जो रीति-रिवाज है, वो यहाँ के आदिवासियों जैसा ही है या अलग है? थोड़ा शादी का, देव-धामी का?
सुकदेवराम नायक : अलग है।
मुश्ताक खान : थोड़ा अलग है?
सुकदेवराम नायक : अलग है। वो देवी-देवता तो मिल जायेगा लेकिन शादी अलग है।
मुश्ताक खान : अच्छा अभी आप इन्हीं के देवी-देवता लोगों को मानते हैं?
जुगाराम नायक : हम लोग मारवाड़ हम एक ही देस के हैं।
मुश्ताक खान : मारवाड़ के?
जुगाराम नायक : हाँ, उनकी बोली और हमारी बोली एक ही है।
सुकदेवराम नायक : मारवाड़ी।
मुश्ताक खान : तो जो मारवाड़ी लोग हैं, उनकी और आपकी बोली एक है?
जुगाराम नायक : हम एक ही देश के हैं। एक ही जाति के हैं। हमारी और उनकी शादी एक जैसी ही होती है।
मुश्ताक खान : ठीक है। तो ये काम मतलब अच्छा चल रहा है आप लोगों का?
सुकदेवराम नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : और बच्चे लोग इसको सीख रहे हैं आगे के लिये?
सुकदेवराम नायक : हाँ, सीख रहे हैं। स्कूल जाते हैं। कभी छुट्टी के समय इसे करो, कहने पर करते भी हैं।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh , to document the culturala nd natural herittage of the state of Chhattsigarh.