ग्रामीण क्षेत्रों में मेला, मड़ई की प्राचीन परंपरा रही है। विषेष तिथि में आयोजित होने वाले इन मेलों में देवी-देवता की पूजा व अन्य धार्मिक अनुष्ठान होता है। इसके साथ-साथ बाजार, मनोरंजन, मेल-मिलाप, सामाजिक-सांस्कृतिक पक्षों से जुड़े विविध आयोजन होते हैं। जिसमें स्थानीय व क्षेत्रीय जनसमुदाय की गहन सहभागिता होती है। यह आयोजन धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ व्यापारिक, सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इन मेलों में जनता का जुड़ाव इतना गहन होता है कि इन मेलों का बेसब्री से इंतजार किया जाता है। इन मेलों से जुड़े अनेक अनुभवों, रोचक किस्से-कहानियों की यादें लंबे समय तक स्मृति में बसी होती है।
छत्तीसगढ़ राज्य का मध्य क्षेत्र ‘धान का कटोरा‘ जाना जाता है। इस क्षेत्र के निवासियों की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। कृषि कार्य के समापन के बाद उत्सवों, मेले-मडई का दौर प्रारंभ हो जाता है। प्राचीन धार्मिक स्थलों, नदी के संगम, तिथि विषेष पर आयोजित मेले की व्यापक श्रंखला पायी जाती है। छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य क्षेत्र में बसे राजिम में आयोजित होने वाला राजिम पुन्नी मेला अपनी विशेष पहचान रखता है। 15 दिवसीय यह मेला माघ पूर्णिमा से प्रारंभ होकर महाशिवरात्रि को संपन्न होता है। इस वर्ष यह 19 फरवरी से 4 मार्च तक मनाया गया।
राजिम
राजिम, छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिला के उत्तरी भाग में स्थित है। राजिम, छत्तीसगढ़ राज्य में पौराणिक तथा ऐतिहासिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। राजिम में अनेक प्राचीनकालीन मंदिर हैं। इस स्थान पर तीन नदियों- महानदी, पैरी तथा सोंढूर नदियों का संगम है। तीन नदियों का संगम, पौराणिक व प्राचीन संदर्भ तथा लोक आस्था के कारण राजिम की ख्याति ‘छत्तीसगढ़ के प्रयाग‘ के रूप में हैं, व इसे तीर्थ का दर्जा प्राप्त है। राजिम में संगम स्थल पर अस्थि विसर्जन, श्राद्ध, पिंडदान जैसे मृत्यु से जुडे़ संस्कार संपन्न किये जाते हैं।
राजिम में त्रिवेणी संगम स्थल पर एक ओर विष्णु का राजीवलोचन मंदिर संगम स्थल पर कुलेष्वर महादेव मंदिर तथा दूसरी ओर लोमस ऋषि का आश्रम स्थित है। राजिम में अनेक प्राचीन मंदिर हैं, जिसमें कुछ मंदिर समूहों में हैं। जगन्नाथ मंदिर, दानेश्वर मंदिर, राजेश्वर मंदिर आदि भी हैं।
माघी पुन्नी मेला
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में माघ पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। ऐसा वर्णित है कि इस दिन नदियों के संगम स्थल पर स्नान कर पूजन, तप, दान से पुण्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।यहां तीन नदियों के संगम स्थल पर प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा में विशाल वार्षिक मेला लगता है। छत्तीसगढ़ी भाषा में पूर्णिमा को ‘पुन्नी‘ कहा जाता है। इस कारण माघ मास की पूर्णिमा में भरने वाले इस मेले को ‘माघी पुन्नी मेला‘ कहा जाता है।
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Image: Nat (acrobat) performers at Punni Mela, Rajim, Chhattisgarh/नट प्रदर्शनी - पुन्नी मेले. Photo Credit: Anzaar Nabi.
इस वर्ष यह मेला माघ पूर्णिमा अर्थात् 19 फरवरी 2019 से महाशिवरात्रि 4 मार्च तक संपन्न हुआ। जिसमें लाखों की संख्या में संत-नागा अखाड़ों से जुड़े साधू व श्रद्धालु जन सम्मिलित होते हैं। इसके विषालता को देखते हुये शासन प्रशासन द्वारा सुरक्षा, पेयजल, आवासीय व भोजन संबंधी विशेष व्यवस्था किया जाता है। संगम स्थल पर नेहरू घाट के अतिरिक्त त्रिवेणी संगम घाट, महानदी आरती घाट तथा पर्व स्नान कुंड का निर्माण किया गया है।
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Image: Naga Sadhu/नागा साधु. Photo Credit: Anzaar Nabi.
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Image: Naga Sadhu/नागा साधु. Photo Credit: Anzaar Nabi.
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Image: Sadhus/साधु. Photo Credit: Anzaar Nabi.
प्रमुख आयोजन-
राजिम माघी पुन्नी मेला का आरम्भ माघ पूर्णिमा की संध्या में महानदी की आरती किया जाता है। मेले के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संत समागम आदि के लिये मंच व आवासीय व्यवस्था होती है। जिसमें प्रतिदिन संध्याकाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन संध्या, आर्केस्ट्रा आदि का आयोजन होता है। मेला स्थल पर मीना बाजार, रंग-बिरंगे वस्तुओं से सजे दुकान, खेल-तमाशे आदि व्यापार सजे होते हैं।
त्रिवेणी संगम स्नान- राजिम माघी पुन्नी मेला में तीन विशेष तिथियों में शाही स्नान होते हैं। प्रथम शाही स्नान माघ पूर्णिमा को , द्वितीय शाही स्नान जानकी जयंती व अंतिम शाही स्नान महाषिवरात्रि को होता है। शाही स्नान में नागा बाबाओं, महामंडलेश्वरों , महंतों व साधु संतों का शाही स्नान होता है। शाही स्नान के पूर्व विशाल जुलूस का आयोजन होता है, जिसका स्वरूप भव्य होता है। अस्त्र- शस्त्र का प्रदर्शन कर नागा साधु अपने अपने अखाड़े का प्रतीक चिन्ह तथा अस्त्र- शस्त्र का प्रदर्शन करते हैं। जिसका दर्शन करने जनसमुदाय एकत्र होता है।
1. माघ पूर्णिमा- राजिम में प्रथम शाही स्नान माघ पूर्णिमा को होता है।
2. जानकी जयंती- द्वितीय शाही स्नान सीता माता के जन्म दिवस के दिन जानकी जयंती को होता है। 3. महाशिवरात्रि - महाशिवरात्रि को अंतिम शाही स्नान होता है। महाशिवरात्रि का पर्व राजिम माघी पुन्नी मेला का अंतिम दिन होता है। इस कारण लाखों की संख्या में श्रद्धालु राजिम आते हैं। संगम स्थल पर स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर में अर्धरात्रि के बाद से ही स्नान कर महादेव की पूजा के लिये श्रद्धालुओं के पहुचने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है जो पूरे दिन बना रहता है।
पंद्रह दिवस के भक्तिमय माहौल, स्नान, पूजा-आराधना, आस्था, विष्वास के धार्मिक माहौल के बाद सांस्कृतिक आयोजन के साथ समारोह पूर्वक राजिम माघी पुन्नी मेला का समापन होता है।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.