आदिवासी चित्रकार जनगण सिंह श्याम की युसुफ से बातचीत

in Article
Published on: 09 February 2018

यु: जनगण तुम जो चित्र बनाते हो, तो उसकी शुरूआत कैसे की?

 

: हमारे गाँव में एक सयाना था (झाड़फूंक करने वाले वृद्ध), वह मिट्टी से दीवारों पर कला-कृतियाँ बनाता था, उससे सीखा, साथ ही हमारे पिता के बड़े भाई का लड़का भी चित्रा बनाता था उसे देखता था। मैंने चित्र बनाना किसी से सीखा नहीं—बस देख-देख कर बनाने लगा।

 

 

यु:  आरंभ में जो चित्र बनाते थे वो किस चीज से बनाते थे, एकदम रंगो का प्रयोग किया या किसी और चीज से?

 

: आरंभ में काली मिट्टी, पीली मिट्टी और गेरू और नील आदि का प्रयोग करता था।

 

 

यु:  आपके मन में चित्र बनाने की इच्छा कैसे हुई? अपने गाँव में तो आपने मूर्तियाँ बनते भी देखीं हैं। फिर आपने इसी काम को क्यों चुना या चित्र ही क्यों बनाये, मूर्तियाँ क्यों नही बनाई। क्या तुम्हें चित्र बनाने को कहा या आपने खुद ही बनाया?

 

:  नहीं मुझसे किसी ने नहीं कहा। जैसे कि हमारे बड़े भाई चित्र बनाते थे, उसको देखकर कई लोगों ने कहा कि ये चित्र अच्छे लगे और लोग उनको इनाम भी देकर जाते थे तो मुझे भी ऐसा लगता था कि यदि मैं भी सीख जाता तो मैं भी चित्र बनाता। मै भी इनाम लेता—उत्साह बढ़ता मेरा।

 

 

यु: आपने गाँव में जो पहला चित्र बनाया वो किन-किन चीजों से बनाया?

 

: गाँव में सेमी का बेला होता है ना, उसके पत्ते का रस निकालकर और लकड़ी का ब्रुश बनाकर गाँव की घर की दीवालों पर चित्र बनाता रहता था। हमउम्र लड़कों के साथ दुर्गा जी की मूर्तियाँ बनाकर नाटक वगैरह में उपयोग करते थे। गाँव के लोग उसे देखते और प्रशंसा करते थे तो हमारा उत्साह बढ़ता था। मैं बैल चराने नदी किनारे जाया करता था। वहीं से गीली मिट्टी से देवी–देवता बना कर घर ले आता था, और उनकी पूजा करते थे। पहले हम लोग नाटक भी करते थे। और मैं उसमे नाचता भी था।

 

 

यु: कौन सा नाच करते थे आप?

 

: नाटक करते समय कोमिक करते हैं, गम्मत वाला नाच करते थे।

 

 

यु: यानि पहले आप नाचकार के रूप में आये।

 

: जी हां।

 

 

यु: किसी पार्टी में काम करते थे या …।

 

: नहीं गाँव में समाज के साथ।

 

 

यु: जिन नाटकों में आप काम करते थे, उसमें कोई खास चीज नजर आती होगी। कोई चित्र या मूर्ति भी बनाते थे?

 

: नाटक में तो यह नहीं बनाता था जैसे गम्मत में चित्र नहीं बनाता था जो मन में आता था, या अच्छा लगा, वही बनाता था, जैसे भगवान में देवी देवताओं का।

 

 

यु: शुरू मे आप धार्मिक व्यक्तियों के चित्रा बनाते थे। बाद में चित्रकला की तरफ रूझान कैसे हुआ?

 

: बाद मे चित्रों में पेड़, चिड़िया, हिरन, गाय आते रहे और चित्रों में रूचि बढ़ती गई।

 

 

यु: आप पहले जो चित्र गाँव में बनाते थे और यहां भारत भवन में चित्र बनाते हो, उसमे कोई फर्क नजर आता है?

 

: जी हां।

 

 

यु: कैसा फर्क नजर आता है?

 

: पहले गाँव में जो चित्र बनाता था वो आड़े–टेढे बनते थे।

 

 

यु: आड़े टेढे का क्या मतलब हुआ?

 

: मतलब मुझे पहले अच्छे चित्र बनाना नहीं आता था।

 

 

यु: पहले जो चित्र बनाते थे वो अच्छे लगते थे या अब जो बनाते हैं, वो अच्छे लगते हैं?

 

: नहीं, दोनो अच्छे लगते हैं।

 

 

यु: फिर आड़े टेढे का मतलब क्या हुआ?

 

: मतलब पहले जो चित्र बनाता था उसमें सफाई नहीं आती थी।

 

 

यु: पहले तुम जो गाँव में चित्र बनाते थे उनमें कौन-कौन से आकार आते थे?

 

: फूल, पेड़, पत्ते बनाता था। कृष्ण जन्माष्टमी पर जंगल में जो साल की लकड़ी होती थी, उससे पटा बनाते थे। उसके ऊपर फिर कृष्ण, शंकर पार्वती के चित्र बनाते थे उसकी पूजा कर उपवास करते थे। दिन भर उपवास किया; शाम को पूजा और सुबह सिराने ले जाते थे।

 

 

यु: ये सब मिट्टी से बनाते थे या चित्रों से?

 

: कृष्ण जन्माष्टमी पर गोबर से चित्र बनाते थे।

 

 

यु: मानव की आकृतियाँ, मूर्ति के अलावा चित्रो में भी बनाते थे या नहीं?

 

: पहले चित्रों में भी बनाता था।

 

 

यु: यहां भोपाल आने के बाद जो चित्र बनाये उनमें भी क्या मानव आकृतियां बनायीं?

 

: हां आदमी और औरत के चित्र बनाये हैं इनके अलावा पेड़ पत्ती आदि भी बनाये हैं।

 

 

यु: आपने एक चित्र बनाया है। उसमें एक पेड़ है, पेड़ की शाखाओं से चिड़िया के पंख आपने जुडे हुए दिखाये हैं—तो इसका कोई विशेष कारण है क्या?

 

: जी हां— मैंने इस चित्र में चिड़िया को पेड़ के पास बनाया है। क्योंकि दूर बनाता तो वह अच्छा नहीं लगता। 

 

 

यु: तुम्हें गांव में तो इतने चित्र बनाने को नहीं मिल पाते थे, भोपाल आने पर तुम्हें सभी रंग मिले तो उनके प्रयोग में कोई दिक्कत तो नहीं आई।

 

: यहाँ रंग अच्छे मिले—चटक रंग ज्यादा रंग प्रयोग से अच्छे चित्र बने; गांव में जो रंग थे, उनसे मद्दे चित्रा बनते थे।

 

 

यु: मैं आपके चित्रों में देखता हूँ कि आप हरा, सफेद, काला तथा एक राख वाले रंग का ही ज्यादा प्रयोग करते है। और दूसरे रंगों का प्रयोग नहीं करते।

 

: मुझे चटक रंग ही पसंद है। जो अच्छे कलर हैं। वो ही पसंद करता हूँ। इन रंगों से ज्यादा काम करने से जो चित्र बनते हैं, उससे मुझे संतोष होता है।

 

 

यु: जनगण तुम चित्रों में बिंदिया क्यों लगाते हो—तुम्हारे अनेक चित्रों में इस तरह की बिंदियां हैं। सफेद, हरी और काली बिंदियां।

 

: कुछ चित्रों मे बिंदिया लगाई हैं। विशेषकर उनमें जिनमें मैंने पक्षी बनाये हैं। पक्षियों के साथ ये कुछ ज्यादा भाती हैं।

 

 

यु: कहीं-कहीं बिंदियों के अलावा आपने लकीरें भी खीची हैैं।

 

: वो इसलिए कि एक ही चित्र पेड़ और पक्षियों को अलग-अलग करने के हिसाब से।

 

 

यु: कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत भवन में जो माडर्न चित्र लगे हैं उनको देखकर ऐसा लगा हो या प्रभाव पड़ा हो।

 

: वे चित्र मुझे ज्यादा समझ में ही नहीं आए। 

 

 

यु: जनगण जी, एक चित्र पर आपने चिड़िया बैठायी है। पर भैंस छोटी है। और चिड़िया बहुत बड़ी।

 

: इसलिए कि भैंस के लिए जगह कम थी चिड़िया के लिए अधिक थी।

 

 

यु: इस कारण आपको चित्र में भद्दापन नजर नहीं आया?

 

: नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता।

 

 

यु: आप जो देवताओं के चित्र बनाते हैं। तो आपके गांव में पहले भी कोई इस तरह के चित्र बनाते थे।

 

: नवा त्यौहार पर सभी गांव के लोग चित्र बनाते हैं। सभी लोग चाक से बनाते थे, मैं रंगो से बनाता था। ये चित्र अच्छे लगे इसलिए सजावट भी करता हूँ रंगो से।

 

 

यु: मण्डला जिले के और किसी चित्रकार की जानकारी है, जिनसे आप मिलें हो या देखा हो आपने उन्हें चित्र बनाते?

 

: जी नहीं मैंने नहीं देखा।

 

 

यु: आप गाँव में चित्र बनाने का काम कब से कर रहे हैं?

 

: लगभग 12 साल की उम्र से चित्र बना रहा हूँ। बहुत छोटा था उस समय से।

 

 

यु: आप शादी में या नवाखाने में चित्र बनाते थे तो उसका पारिश्रमिक मिलता था?

 

: जी नहीं, वो तो शादी में सजावट के लिए ही बनवाते थे।

 

 

यु: घर की सजावट में कैसे चित्र बनाते थे? ज्यादातर कौन सी आकृतियां बनाते थे?

 

: शंकर जी हैं, कृष्ण भगवान हैं, तथा बाहर की दीवारों पर पेड़, पशु, पक्षी आदि बनाते थे।

 

 

यु: शादी-विवाह और पर्व त्यौहार पर क्या आप विशेष चित्र बनाते थे?

 

: दरवाजे के अंदर शंकर, कृष्ण आदि और बाहरी दरवाजों पर चिड़िया पशु, पक्षी आदि ही बनाते हैं। विवाह के अवसर पर शादी से संबंधित जैसे आदमी बैठकर नचाता है वो चित्र भी बनाते हैं।

 

 

यु: मतलब शादी से संबंधित चित्र बनाते थे। अच्छा नवरात्रि में कैसे चित्र बनाते हैं?

 

: दरवाजे पर नरायण देव, महादेव बूढ़ादेव, अंदर बड़े देव, फुलवारीदेव, मड़िया देव, दुर्गा बाहर आंगन में बनाते हैं। ठाकुर देव गाँव के बाहर बनाते हैं। घर के अंदर के देव जैसा बड़ा देव, भरा देव, बाग देव इनकी नवरात्रि के दिन पूजा करते हैं। बाहर के देवों की पूजा दशहरे के दिन करते हैं।

 

 

यु: जो चित्र नवरात्रि पर धान की फूसी से बनाते हैं क्या इन चित्रों को कागज पर भी आप रंग से बनाते हैं?

 

: हां बनाते हैं।

 

 

यु: जैसे आप नरायण देव बनाते हैं। तो दोनो के बनाने में क्या फर्क होता है?

 

: सकल में अन्तर रहेगा और रंग अपनी इच्छा से ही भरेंगे। चेहरा अलग-अलग रहेगा।

 

 

यु: पहले आप जो चित्र बनाते थे और अब बनाते हैं उनमें अंतर है। ऐसा क्यों?

 

: क्योंकि एक जैसा चित्र बनायेंगे तो वह अच्छा नहीं लगेगा। बल्कि पहले की नकल ही होगा दूसरा चित्र। जैसे कि पक्षी किसी चित्र में छोटा और किसी चित्र में बड़ा बनाया है इससे भिन्न–भिन्न आकृतियां तो बनती ही हैं। साथ ही अंतर भी रहता है तो ज्यादा अच्छा लगता है।

 

 

यु: जनगण जी, इधर आप कुछ दिनों से रेखांकन कर रहे हैं, तो तुम्हे अपने रेखाकंन अच्छे लगते हैं या वे रंगीन चित्र अच्छे लगते हैं जो तुम बनाते हो।

 

: रंगीन चित्र रेखांकन की अपेक्षा ज्यादा अच्छे लगते हैं। मैं रंगीन चित्र को अपने करीब ज्यादा पाता हूँ।

 

 

यु: रेखांकन करते समय तुम्हे कैसा लगता है।

 

: लगता तो ठीक है पर चित्र बनाने का मजा कुछ और ही है।

 

 

यु: आप आजकल भारत भवन में हैं। यहाँ माडर्न गेलरी में बहुत से चित्रकारों के चित्र लगे हैं आपने देखे ही होगें। उनमें सबसे ज्यादा अच्छे चित्र कौन-कौन से और किन-किन चित्रकारों के लगे?

 

: गुलाम मोहम्मद शेख़, मंजीत बावा, स्वामीजी (जे. स्वामीनाथन) आदि के चित्र अच्छे लगते हैं। साथ ही जानकीराम जी की मूर्तियां, विकास भट्टाचार्य, जोगेन्द्र चौधरी के गणेश आदि भी अच्छे लगे।

 

 

यु: भारत भवन की आदिवासी कला दीर्धा में किसके चित्र अच्छे लगे?

 

: पेमा फत्या, बेलगुर, मिठ्टीबाई इन कलाकारों के चित्र बहुत अच्छे लगते हैं मुझे।

 

 

यु: जनगण, तुमने कुछ छापे चित्र भी निकाले तब कैसा लगता था?

 

: चित्र बनाने जैसा आभास नहीं होता था।

 

 

यु: छापे निकालना और ड्राइंग करने मे तुम्हें क्या अचछा लगता है?

 

: ड्राइंग ज्यादा अच्छी लगती है बनिस्बत छापे के।

 

 

यु: आप अब यही करेगें, क्या यह तय कर लिया है?

 

: जी हां, तय कर लिया है।

 

 

यु: तुम यहीं रहकर काम करोगे या गाँव जाओगे।

 

: जी, मै यहीं रहकर कार्य करना चाहता हूँ।

 

 

यु: और कोई नए प्रयोग तुम्हारे दिमाग में चल रहे हैं क्या, चित्रकला के बारे में?

 

: चित्र बनाऊंगा पर पहले चित्रों से हटकर नहीं। उन्हीं चित्रों को और सुधड़ता से बनाऊंगा, अंतर लाते हुए।

 

 

यु: जैसा कि आप देवताओं को बनायेंगे तो वे पहले से किस तरह अलग होंगे, जो अब बनाओगे।

 

: टेक्सचर में अन्तर करके बनाऊंगा।

 

 

यु: जनगण जी आप शादी के समय जो चित्र दीवार पर बनाते थे जैसे नाचते हुए व्यक्ति या शराब पीकर पड़ा आदमी, वैसी आकृतियां आप चित्रों में क्यों नहीं बनाते?

 

: जी ऐसे चित्र दीवार पर ही ज्यादा अच्छे बनते हैं। कागज पर सफाई पैदा नहीं कर पाता हूं।

 

 

यु: जनगण, आप ऐसा नहीं सोचते कि यदि यह चित्र तुम कागज पर बनाओ तो पहले सफाई न आवे पर बाद में सुधड़ता भी आवे इनमें।

 

: हो सकता है।

 

 

यु: आप गांवों में जो देखते हैं वहीं चित्रों में बनाते हैं। यहां शहर में नई चीजों को देखकर तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इनके भी चित्र बनाये जायें?

 

: लगता तो है पर अभी तक इस तरह के चित्र नहीं बनाए—एक चित्र बहुमंजिल भवन का बना रहा था पर अधूरा ही है।

 

 

यु: चित्र बनाने का कोइ खास समय है या कभी भी बनाने लगते हैं?

 

: अधिकांश शाम को ही चित्र बनाता हूँ।

 

 

यु: शहर की कौनसी चीज है जिसको बनाने का आपका मन करता है?

 

: जैसे इच्छा होती है कि बस-स्टाप पर जो भीड़ भाड़ होती है। उसके या उस लाइन में खड़े व्यक्तियों के चित्र बनाने को मन करता है।

 

 

यु: जनगण जी आप जब शहर के कलाकारों से मिले तो आपको कैसा लगा?

 

: जी, मुझे बहुत ही अच्छा लगा, उत्साह बड़े, बड़े-बड़े कलाकारों से मुलाकात हुई, मेरा बड़ा सौभाग्य, जो इन इन महान कलाकारों के साथ कुछ सीखने का मौका मिला।

 

 

यु: जनगण, कभीं तुम्हें ऐसा लगता है कि जो शहर के कलाकार चित्र बनाते हैं, वो अच्छे हैं या तुम्हारे चित्र अच्छे हैं।

 

: जी हाँ, शहर के कलाकारों के चित्र अच्छे लगते हैं।

 

 

यु: शहर के कलाकारों के चित्रों में मानव आकृतियां होती हैं और रेखाएं होती हैं। कौन से चित्र आपको अच्छे लगते हैं?

 

: रेखाओं वाले तो समझ में नहीं आते। आकृतियों वाले चित्र समझ में भी आते हैं। अच्छे भी लगते हैं।

 

 

यु: अभी तक आपने कितने चित्र बनाये।

 

: 500–600 चित्र बनाये हैं।

 

 

यु: अच्छा जनगण जी, तुम जो पहाड़ पर रहते हो तुम्हारा घर पहाड़ पर ही है, फिर तुम्हारे चित्रों में पहाड़ नहीं होते। क्या इसका कोई विशेष कारण है?

 

: पहाड़ बनाने पर, उसमें चटक रंग का इस्तेमाल नहीं हो पाता सो बनाता ही नहीं हूं।

 

 

यु: नदी वगैरह बनाइ?

 

: जी हां, कृष्ण जी की एक पेटिंग है जो भारत भवन में कला दीर्धा में लगी है। उसमें नदी बनाई है।

 

 

यु: कृष्ण जी की इस पेटिंग में आपने गाय को हरा और नीला बनाया है। गाय हरी तो नहीं होती है।

 

: मुझे वे ही रंग अच्छे लगे इसलिए। यह मैं भी जानता हूँ कि गाय हरी नहीं होती है।

 

 

यु: ऐसे रंग का प्रयोग आदमी के चित्र बनाते समय भी करेंगे।

 

: जी हां, जैसा अच्छा लगेगा, वैसे रंग प्रयोग करूगां।

 

 

यु: अपनी चित्रकला के संबंध में आप अपनी और से भी कुछ कहना चाहेंगे?

 

: मैंने शायद सभी कुछ बता दिया है।

 

 

यु: एक ​प्रश्न और, पेमा फात्या का चित्र आपको बहुत अच्छा लगता है। ऐसा क्यों?

 

: इनके चित्रों में विभिन्न रंगों का प्रयोग होता है। रंग ज्यादा चटक होते हैं। जो मुझे पसंद है।

 

 

यु: और बेलगूर भी तो चटक रंग लेता है। फिर उसका चित्र कैसा लगता है?

 

: उनके चित्रों में एक दो रंगों का प्रयोग होता है। ज्यादा चटक रंग नहीं।