बस्तर के समकालीन लौहशिल्प , Contemporary Ironcraft from Bastar

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मुश्ताक खान

चित्रकला एवं रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर।
भारत भवन ,भोपाल एवं क्राफ्ट्स म्यूजियम ,नई दिल्ली में कार्यानुभव।
हस्तशिल्प,आदिवासी एवं लोक कला पर शोध एवं लेखन।

बस्तर के लौहशिल्प का नया रूप

 

बस्तर की पारम्परिक लौह शिल्प कला में सन १९८८ के बाद बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। इस वर्ष बस्तर के लोहार पहली बार अपनी कला के प्रदर्शन हेतु  क्राफ्ट्स म्यूजियम में आमंत्रित किये गए।सोनाधर और ननजात नामक इन लोहारों को सन १९८९ भारत सरकार ने  राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया।  वे एक माह दिल्ली में रहे उनके कलात्मक काम को अनेक डिजाइनर ,व्यपारियों और एक्सपोर्टरों ने देखा। लोहारों ने भी पहली बार यह जाना कि देवी -देवताओं और विवाह , मृत्य संस्कारों से अलग उनकी बनाई चीजें शहरों में घर सजाने के काम भी आ सकतीं हैं। इसके बाद तो यह कला निर्यातकों और डिजायनरों की प्रिय सामग्री बन गई। व्यापर का यह नया अवसर देख कर लोहारों ने भी अनेक नए -नए आइटम बनाना शुरू कर दिया। बस्तर के वर्तमान लौह शिल्प अपने परम्परागत प्रारूप और नए उपयोग का अभूतपूर्व मिश्रण हैं।