छत्तीसगढ़ के पुरातत्वीय धरोहर स्थलों में भोरमदेव सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। लगभग 11वीं सदी ईसवी के स्थापत्य कला के विकसित अंग-उपांगो के अद्भुत सम्मिति तथा संतुलन से परिपूर्ण यह देवालय लौकिक प्रतिमाओं के बहुलता के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इस स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक महत्व और पुरातत्वीय वैभव पर्यटकों को सम्मोहित करता है। भोरमदेव के ऐतिहासिक महत्व से संबंधित लगभग 14 वीं सदी ईसवी का एक अभिलेख मड़वा महल मंदिर से प्राप्त हुआ है जिससे फणि (नाग) वंश के उत्पत्ति और इस वंश के अन्य राजाओं की जानकारी मिलती है। फणिनाग वंश के शासकों के काल के अभिलेख तथा सिक्के अत्यल्प हैं।

Bhoramdeo Temple. Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak

Bhoramdeo Pond. Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak

Picturesque Landscape of Bhoramdeo. Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak
दक्षिण कोसल में लगभग 11वीं-12वीं सदी ईसवी में राज्य करने वाले प्रमुख राजवंशों में रतनपुर के कलचुरि, कवर्धा के फणिनाग और बस्तर के छिंदकनाग उल्लेखनीय हैं। फणिनाग शासकों के काल के पुरास्थलों में- भोरमदेव, सिली पचराही, बकेला, देवबलोदा आदि स्थल उल्लेखनीय हैं। इस वंश के शासके प्रमुख रूप से शैवोपासक थे तथापि उनके शासन काल में वैष्णव एवं शाक्त मंदिर भी निर्मित हुये और जैन धर्म भी पल्लवित हुआ। संभवतः समकालीन कलचुरियों से प्रतिस्पर्धा के कारण फणिनाग वंश के शासक शक्तिहीन होकर सामंतो के सदृश्य सीमित क्षेत्र में शासन करते रहे।
भोरमदेव मंदिर, फणिनागवंश के कीर्तिस्तंभ के रूप में जीवंत स्मारक स्थल हैं। यहां के अन्य दर्शनीय पुरास्थलों में स्थानीय किवदंतियों से जुड़े हुए मड़वा महल तथा छेरकी महल फणिनाग वंश के ढलते प्रताप के युग में शासन करने वाले राजाओं के शासन काल में निर्मित हैं। भोरमदेव मंदिर के स्थापत्य कला के साथ मंदिर परिसर में स्थित स्थानीय संग्रहालय में संग्रहीत अनेकानेक देव प्रतिमाएं, सती प्रस्तर तथा योद्धा प्रतिमाएं क्षेत्रीय कला के उदाहरण हैं। ये प्रतिमाएं भोरमदेव के अतीत के सांस्कृतिक दर्पण हैं जिनमें दांपत्य बंधन के साथ जुड़ी पारलौकिक मान्यताएं, शौर्य, बलिदान और व्यवसाय प्रतीक शिल्पांकन कला के माध्यम से मुखरित हैं।
पौराणिक साहित्य एंव लौकिक गाथाओं में नारियों के उज्जवल चरित्र, भक्ति, ज्ञान पिपासा और त्यागवृत्ति के अनेकानेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार पुरूषों से संबंधित शौर्य, आतातायियों का दमन, दस्यु तथा हिंसक पशुओं से रक्षा, गोवंश की रक्षा के लिए जीवन-उत्सर्ग आदि से संबंधित रोचक उल्लेख मिलते हैं। छत्तीसगढ़ में वनवासी जनजातियों के साथ अन्य कृषिहर, व्यवसायी तथा शिल्पीय जातियां ऐतिहासिक काल से एक साथ रहते चले आ रहे हैं। इनमें तैलिक, सुनार, सरोवर तथा कूप खनन करने वाली जातियां, कुम्हार, बुनकर, गोपालक राउत, धातु के बर्तन निर्माण करने वाले कसेर, धातु शिल्प निर्माता घड़वा, लुहार, काष्ठ से सामग्री बनाने वाले शिल्पी, नापित, मालाकार, वैद्य, पशु प्रशिक्षक, उपचार करने वाले तंत्र-मंत्र के ज्ञाता, नाविक आदि उल्लेखनीय हैं। नगर तथा धार्मिक महत्व के स्थलों में राज्याधिकारियों के अतिरिक्त शास्त्रज्ञ ब्राह्मण, धनिक वर्ग तथा विविध व्यवसायी भी निवास करते थे। प्राचीन काल से शासनतंत्र में समाज के विविध जातियों का सक्रिय सहयोग रहता था। भोरमदेव तथा मड़वा महल परिसर में संग्रहीत अवशेषों में फणिनाग युगीन संस्कृति की पारंपरिक सामाजिक मान्यताएं और शौर्य के प्रतिष्ठा की झलक दिखाई पड़ती है। मड़वा महल अभिलेख के विवरण के अनुसार फणि (नाग) वंश के शासकों की उत्पत्ति जतुकर्ण नामक मुनि की पुत्री मिथिला तथा पाताल लोक के शेष राज (शेष नाग) से गंधर्व विवाह उपरांत उत्पन्न पुत्र अहिराज से हुई है। इस अंचल के शिल्पकृतियों में स्वतंत्र रूप से रूपायित नाग प्रतिमाएं उनकेे देवत्व के परिचायक हैं। भोरमदेव से उत्कीर्णित तथा अन्उत्कीर्णित दोनों प्रकार के सती प्रस्तर और योद्धा स्मृति पट्ट मिले हैं।

Divine Couple [?]. Bhoramdeo Museum, Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak

Memorial Stone. Bhoramdeo Museum, Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak

Memorial Stone [Warrior?]. Bhoramdeo Museum, Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak
सती प्रस्तरों पर पारंपरिक रूप से उपर के मध्य भाग में चूड़ियों से परिपूर्ण बांह सहित हथेली, दोनों छोर पर सूर्य चन्द्र तथा कलश अंकित रहते हैं। इसके मध्य भाग में संबंधित दंपत्ति की हाथ जोड़े बैठी हुई आकृति होती है साथ ही कभी-कभी शिवलिंग पूजन का दृश्य अंकित रहता है।

Memorial Stone. Bhoramdeo Museum, Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Rohit Rajak
नीचे के भाग में तिथि-संवत सहित संक्षिप्त परिचयात्मक विवरण उत्कीर्ण रहता है अथवा समतल अनुत्कीर्णित सतह होता है। इसी के साथ रिक्त अंतिम भाग में व्यवसाय मूलक आकृतियां भी निर्मित मिलती हैं। उपरोक्त विविध अंकनों के फलस्वरूप तद्युगीन पारंपरिक मान्यताओं तथा सामाजिक इतिहास की जानकारी होती है। योद्धा स्मृति पट्ट व्यक्तिगत पराक्रम से संबंधित होते हैं। ऐसे शिल्प पट्ट पर आक्रामक स्थिति में गतिशील, विशाल खड़्ग और ढाल अथवा धनुष-बाण पकड़े हुये बलिष्ठ योद्धा की प्रतिमा निर्मित रहती है। उपर के रिक्त भाग में निर्मित लघु आकृति सूर्य-चन्द्र तथा अन्य प्रतीकों से पराक्रमी योद्धा के वीरतापूर्ण प्राणोत्सर्ग की जानकारी होती है। भोरमदेव में अनेक सती प्रस्तरों के नीचे के भाग में कोल्हू, टोकनी-फावड़ा, तराजू तथा हथौड़ा के चिन्हांकन युक्त सती प्रस्तर प्रदर्शित हैं जिनसे तेल उत्पादक, भवन-कूप निर्माण और आभूषण निर्माण कार्य से संबंधित जाति-वर्ण की जानकारी होती है। सती प्रस्तरों में रूपायित सती एवं योद्धा आकृतियों के पारंपरिक आभूषण सीमित एवं संतुलित हैं। मुखाकृति सौम्य तथा निर्विकार हैं। पुरूषों के केश जूड़े में बंधे हैं।
भोरमदेव के विस्तृत क्षेत्र से संग्रहीत पुरावशेषों से आभासित होता है कि फणिनाग शासकों के काल में यहां नगर सन्निवेश के रूप में विकसित राजधानी रहा है। ग्राम के सन्निकट से प्रवाहित सकरी (शंकरी) नाला तथा अन्य सरोवरों में पर्याप्त स्वच्छ जल संचित रहता था। ऐसा आभासित होता है कि सकरी नाला के तट पर विशिष्ट जनों के अंतिम संस्कार सम्पन्न होते रहे होंगे। कलात्मकता की दृष्टि से योद्धा पट्ट आकर्षक हैं। संभावना है कि योद्धा पट्ट पर निर्मित आकृतियां राज परिवार से संबंधित व्यक्तियों की होंगी। एक योद्धा पट्ट पर सबसे उपर मध्य में लघुकाय वृषभ का अंकन है। इससे स्पष्ट होता है कि संबंधित योद्धा शिव का भक्त था अथवा बैलों के द्वारा दूर-दूर तक खाद्यान्नों का परिवहन करता रहा होगा। एक अन्य संभावना यह है कि किसी बाघ से आक्रांत वृषभ की रक्षा करते हुये अंकित योद्धा का प्राणोत्सर्ग हुआ होगा।
मड़वा महल में प्रदर्शित एक सती प्रस्तर में संवत् सहित सतीम नामक एक शासक का उल्लेख है। सती प्रस्तरों पर उत्कीर्ण अभिलेखों में तिथि संवत के अतिरिक्त व्यक्तिवाचक नाम तो मिलते हैं परन्तु स्थल सूचक नाम नहीं मिलते हैं। अतः इन प्रस्तरों का संबंध इनके प्राप्ति स्थल से जोड़ा जाता है। सती प्रस्तरों में अकिंत सूर्य, चन्द्र, कलश तथा हथेली मांगलिक प्रतीक हैं। इनका अभिप्राय युग-युगांतों तक स्मृति तथा कीर्ति की स्थिरता की घोषणा और अभय मुद्रा युक्त हथेली में लोकमंगल की भावना सन्निहित है।

Memorial Stone. Madwa Mahal, Kawardha, Chhattisgarh. Courtesy: Anzaar Nabi
दक्षिण कोसल में शासन करने वाले प्रारंभिक राजवंश-शरभ, सोम तथा कलचुरियों के काल के सती प्रस्तरों का अभाव है। तद्युगीन स्थापित महत्वपूर्ण पुरातत्वीय धरोहर स्थल- ताला, मल्हार, सिरपुर, राजिम, डीपाडीह, महेशपुर आदि स्थलों में गिने-चुने सती प्रस्तर मिले हैं जो परवर्ती काल के हैं। भोरमदेव में सती प्रस्तर तथा योद्धा स्मृति पट्ट की बाहुल्यता फणिनाग युगीन सामाजिक मान्यताएं, प्रतिष्ठा और उत्तरदायित्वपूर्ण लोकोपकार की भावना को प्रकाशित करते हैं। इन पर अंकित अभिलेखांे के वाचन और अनुशीलन से भोरमदेव के सांस्कृतिक इतिहास पर नवीन प्रकाश पड़ेगा।
छत्तीसगढ़ अंचल में प्राचीन काल के ज्ञात अभिलेख चिता लेख है। ऐसे अभिलेख छातागढ़ (दुर्ग जिला) मल्हार (बिलासपुर जिला) आतुरगांव (कांकेर जिला) से ज्ञात हैं। चिता लेख में आकृति रूपायित नहीं की जाती है। भोरमदेव से ज्ञात सती प्रस्तर लेख अज्ञात ऐतिहासिक जानकारियों के अन्वेषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। फणिनाग शासकों के काल में छत्तीसगढ़ के दुर्गम वनांचल में स्थापत्य कला के कलात्मक स्मारक के अतिरिक्त नागरिक जीवन के विकसित स्वरूप के परिचायक पुरावशेषों में अतीत का हर्ष, अश्रु और रोमांच समाया हुआ है।
सती प्रस्तरों के निर्माण प्रक्रिया के सहयोगी शिल्पियों में मूर्तिकार, लेखक तथा उत्कीर्णक की संयुक्त भूमिका होती है। योद्धा प्रतिमाओं का निर्माण दक्ष कलाकार करते थे। विविध धार्मिक कल्पों के साथ इनकी स्थापना की जाती थी। देशज शिल्पकला के इन अवशेषों में इतिहास के तथ्यांश उद्घटित होते हैं। भोरमदेव के देशज कला के परिचायक सती प्रस्तर जाति एवं वर्ण के सीमाओं से परे फणिनाग युगीन आदर्श सामाजिक स्थिति के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.